दुर्ग

आंदोलन के पहले ही शिक्षक संगठनों में बिखराव

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दुर्ग। प्रदेश के शिक्षकों ने कल 24 अक्टूबर गुरुवार को काम बंद हड़ताल रखा है। आम जन सोचते है कि शिक्षक आए दिन हड़ताल करते हैं। पर सच यह नहीं।  

शिक्षक अपना अधिकार मांगते है, और सरकार उन्हें पूरा नहीं करना चाहती, यह शिक्षक आंदोलन का मूल मसला है।
 इस बात को  समझना होगा कि शिक्षाकर्मी से शिक्षक बने छत्तीसगढ़ राज्य के हजारों शिक्षक कई सालो से शोषण का शिकार होते आए हैं। नौकरी से इनका जीवन तो चल जाता है पर भविष्य के प्रति अनिश्चितता बनी रहती है। इन्होंने देखा है कि दो–चार सालों के दौरान रिटायर हुए इस संवर्ग के हाथ कुछ नहीं लगा हैं। जब एक बार विधायक या सांसद बनने पर फूल पेंशन की पात्रता हो सकती है तो अपना पूरा जीवन खपा देने वाले शिक्षकों ने क्या पाप किया है कि उनका बुढ़ापा तकलीफ के साए में बीते।
आपको पता होगा, अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने 1995 में शिक्षाकर्मी भर्ती आरम्भ की थी। उस समय मात्र पांच सौ से हजार रूपये महीने में शिक्षाकर्मी नाम से भर्ती की गई। ये शिक्षाकर्मी भी ठीक वही काम करते थे, जो उनके साथ वाले नियमित शिक्षक करते थे। पर बरसों तक इनके वेतन में भरी असमानता रही। संविलयन के बावजूद वह बढ़ती ही गई।
 यदि ये शिक्षाकर्मी  आज शिक्षक संवर्ग तक पहुंचे है, तो वह दो दशकों के आंदोलन का परिणाम है। संविलयन मिल गया, पर उसके बाद की शर्तों को पूरा करने में सभी सरकारें विफल रही है। सभी सरकारों का प्रयास शिक्षकों के पैसों पर डंडी मारने की रही है। शिक्षा और शिक्षकों के लिए हमारा सरकारी तंत्र गंभीर नहीं रहा। यही राज्य सरकार अपने अन्य महकमों में बेसिक सेवा शर्तों का पालन करती है। किंतु शिक्षकों के लिए रवैया बदल जाता है। 
बहरहाल, 24 अक्टूबर की हड़ताल के मसले पर शिक्षक संगठनों में ही एका नहीं है। 
छत्तीसगढ़ में अभी शिक्षकों के कम से कम 50 संगठन होंगे। किसी किसी संगठन में तो सिर्फ पदाधिकारी भर है। इतने सालों में शिक्षक संगठन भी राजनीति के अखाड़े बन गए हैं। अभी 16 संगठन ऐसे हैं जो हड़ताल का विरोध कर रहे हैं और शिक्षकों को हड़ताल से दूर रहने बयान दे रहे हैं। इस पक्ष के शिक्षक नेताओं का कहना है कि जब तक सारे संगठन एक मंच पर नहीं आ जाते, आंदोलन नहीं होना चाहिए। इनका कहना गलत नहीं, पर यह भी सच की एका की राह में यही वर्ग सबसे बड़ा रोड़ा बनता है। 
शिक्षकों के विभिन्न मांग है। जिसमें सही पेंशन देने और वेतन विसंगति दूर करना प्रमुख है। 
बताते चलें कि वेतन विसंगति के विरोध में शिक्षकों ने भूपेश के कार्यकाल में बड़ा आंदोलन किया था। इसमें देश के बड़े किसान नेता राकेश टिकैत भी समर्थन देने धरना स्थल आए थे।   18 दिनों में सहायक शिक्षकों का वह आंदोलन बेनतीजा समाप्त हो गया। 
राज्य में एक लाख नौ हजार सहायक शिक्षक कार्यरत है। यह दुर्भाग्य ही है कि कक्षा पहली से पांचवीं पढ़ाने वाले शिक्षकों आज भी इस राज्य में सहायक शिक्षक कहा जाता है। शिक्षकों की यह सबसे बड़ी जमात सरकार और शिक्षक संगठनों की नूराकुश्ती में शुरू से छला जाता रहा है। ये सहायक शिक्षक आज भी अल्पवेतन में परिवार चला रहे है। सभी सरकारों ने वेतन विसंगति दूर करने का वादा तो किया पर निभाने में सभी पीछे हट गए। इनमें मायूसी है, हताशा है। पर हमारे देश में यह गंभीर बात नहीं होती।

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