दुर्ग

अंतर्मन के रावण को जलाना ही सच्ची दशहरा मनाना है - ब्रह्माकुमारी रीटा 

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दुर्ग (छत्तीसगढ़ )। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के बघेरा स्थित "आनंद सरोवर "में दशहरा पर्व अत्यंत ही हर्षोल्लास से मनाया गया । इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी संस्थान के आसपास शहर व ग्रामीण अंचल से अनेक भाई- बहनें उपस्थित हुए ।
            ब्रह्माकुमारी दुर्ग जिले की संचालिका रीटा बहन ने दशहरा पर्व का आध्यात्मिक रहस्य बताते हुए कहा कि दशहरा बुराई पर अच्छाई की विजय का पर्व है, जिसे श्रीराम और रावण के बीच के युद्ध के रूप में दर्शाया गया है। इसमें श्रीराम, रावण को पराजित करते हैं और उसके नाभि पर बाण मारकर उसे मार देते हैं। नाभि शरीर की चेतना का प्रतीक है, जो 10 मुख्य विकारों का मूल कारण है। ये 10 विकार हैं: काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, घृणा, छल, हठ और आलस्य, जो रावण के 10 सिरों द्वारा दर्शाए जाते हैं। रामायण के अनुसार, जब श्रीराम रावण के किसी भी सिर को काटते थे, तो वे फिर से प्रकट हो जाते थे। और रावण तभी मरा जब श्रीराम ने उसकी नाभि पर बाण चलाया। इसी प्रकार, जब हम आत्म-चेतना को धारण करते हैं और परमात्मा को याद करते हैं, तो हमारे शरीर की चेतना यानि देहभान समाप्त होता है और सारे विकार नष्ट हो जाते हैं।
   श्रीराम परमात्मा का प्रतीक हैं और रावण बुराई का प्रतीक है, जो आज के समय में हर आत्मा के व्यक्तित्व पर शासन कर रही है। जब हम परमात्मा की अच्छाईयों को अपने व्यक्तित्व में धारण करते हैं, तो हम अपने व्यक्तित्व में मौजूद 10 सिर वाले रावण को जला देते हैं। हर साल रावण के पुतले का जलाना इसी प्रक्रिया का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व है, जो तब होती है जब परमात्मा दुनिया के परिवर्तन का कार्य करते हैं और रावण यानी बुराई को नष्ट करके दुनिया की सभी आत्माओं को पवित्र बनाते हैं तथा दुनिया में राम राज्य या स्वर्ग की स्थापना करते हैं। हर साल रावण को जलाने से पहले उसके पुतले की ऊंचाई को पिछले साल की तुलना में बढ़ाया दिया जाता है। यह दुनिया में बढ़ती हुई विकृतियों वा बुराइयों का प्रतीक है, जो हर साल बढ़ रही हैं और समय के साथ मानवता पर विभिन्न रूपों में अशुद्धि और नकारात्मकता का नियंत्रण हो रहा है। 
        जब निराकार परमपिता परमात्मा " शिव " विश्व चक्र के अंत में यानी कलियुग या लौह युग के अंत में दुनिया के परिवर्तन का कार्य करते हैं, तब हर आत्मा, जो परमात्मा की संतान और प्रिय है, जिसे रामायण में श्री सीता के रूप में दर्शाया गया है, वह दुःख में होती है और रावण के नकारात्मक प्रभाव के अधीन होती है, और उसके द्वारा बंदी बना ली जाती है। इसी समय परमात्मा सर्व आत्माओं रूपी सीता को रावण के बंधन से मुक्ति के लिए सत्य ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते हैं जिससे वे आत्मायें रूपी सीतायें परमात्मा की याद के द्वारा स्वयं को रावण की अधीनता से मुक्त कर स्वयं सर्व गुण संपन्न सोलह कला संपूर्ण बन जाती है यही वास्तव में सच्ची दशहरा पर्व मनाना है ।
     इस अवसर दशहरा पर्व मनाने आये हुए सभी भाई-बहनों नें स्वयं की बुराइयों को एक पत्र में लिखकर रावण दहन के समय अपनी बुराइयों को पूर्ण रूप से दहन कर एवं परमात्मा के सम्मुख संकल्प किये कि हम सभी इन बुराइयों से स्वयं को मुक्त कर नई दुनिया के स्थापना में परमात्मा के कार्य में मददगार बनेंगे ।

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