छत्तीसगढ़

51 साल बाद गांव पहुंचे स्वामी विश्वज्योति सरस्वती

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16 साल की उम्र में छोड़ दिया था घर 

योग की दे रहे शिक्षा 

 नगरी। योग को बढ़ावा देने और आश्रम में सेवा का जुनून नगरी के ग्राम मोदे निवासी हीरालाल कश्यप में इस कदर हावी हुआ की उसने घर छोड़कर आश्रम में शरण ले ली, फिर घर की ओर कभी मुड़कर नहीं देखा। बल्कि गंगा नदी किनारे के आश्रमों में जीवन बीताते हुए योग की शिक्षा देने लगे। महज 16 साल की उम्र में घर छोड़ने वाले हीरालाल की पहचान अब योग गुरु के रुप में है। उन्हें स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के नाम से जाना जाता है। वे 51 साल के बाद अब गांव पहुंचे तो ग्रामीणों ने उनका जगह जगह स्वागत किया। बताया गया है कि मोदे निवासी बाबूलाल कश्यप के हीरालाल कश्यप द्वितीय पुत्र है, वे पांच भाई है। 51 साल पहले योग आश्रम बिहार में सेवा देने चले गये थे। उन्होंने योग गुरु के रुप में बिहार स्कूल आफ योगा मुंगेर में अपना सेवा दी पश्चात बैजनाथ धाम देवधर मंगोत्री में 2 वर्ष, गुजरात के नदियार में 5 वर्ष उज्जैन में 4 माह सेवा दी, उनके बाद ऋषिकेष आश्रम, कैलाश आश्रम, योगीनिकेतन में सेवा प्रदान की। गांव आने पर मोदे के अलावा सांकरा व घठुला में भी ग्रामीणों ने उनका स्वागत किया। उनके परिवार में 5 भाई में से दो भाई गोविंद कश्यप व सुरेश कश्यप उनकी सेवा कर रहे है। स्वागत करने वालों में डॉ रुद्र कश्यप, डॉ राजु सोम, रोमेस कश्यप, डारविन कश्यप, नवल कश्यप, श्रद्धा सोम, रीतु सूर्यवंशी, गीता देवी, वंदना कश्यप ने स्वागत किया। बताया गया है कि योग गुरु स्वामी विश्वज्योति सरस्वती के शिष्य जापान, व स्वीजरलैंड, इंग्लैंड तक है। योग शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने पूरे देश में अलग पहचान बनाई है। कुछ दिन नगरी में छोटे भाई गोविंद कश्यप के निवास में रहने के बाद अपने आश्रम वापस लौट जाएंगे।

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