मानव धर्म का पालन करना ही धर्म है : निरंजन महाराज

मानव धर्म का पालन करना ही धर्म है : निरंजन महाराज

दक्षिणापथ, दुर्ग। दुर्ग जिला देवांगन समाज द्वारा माँ परमेश्वरी आश्रम, बघेरा, दुर्ग में आयोजित कोरोना काल में दिवंगत स्वजनों की सद्गति हेतु सार्वजनिक श्री मद्भागवद महापुराण कथा सप्ताह ज्ञानयज्ञ में अंतिम दिवस के कथासार श्री गीता सार प्रवचन तत्पश्चात भगवान श्रीविग्रह में तुलसी-दल अर्पण, हवन पूर्णाहुति, कपिलातर्पण, सहस्त्र धारा स्नान प्रसंग में भागवत मर्मज्ञ  संत निरंजन महाराज, श्रीभागवत आश्रम, लिमतरा ने कर्णप्रिय वाणी में श्रीमुख से बताया कि जीवन संग्राम अर्थात महाभारत है। सद्गुरु की शरण में नहीं जाने से जीवन का क्षरण होता है। कृष्ण हैं तो विजय है। कृष्ण का अर्थ विजय ह। धर्म क्षेत्र अर्थात् कुरुक्षेत्र है। कर्मयोग ही परमात्मा से मिलन का संयोग है। गृहस्थ का त्यागी होना ईश्वर प्राप्ति की युक्ति है। कर्मक्षेत्र, गुरु, ईश्वर ही जीवन का सार है। कर्तव्य कर्म का पालन मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाता है। पांचजन्य धर्म के जयघोष का प्रतीक है। मोह - माया में जीना निर्जीवपन का प्रतीक है। जीवन और मृत्यु के प्रति समभाव रखना पांडित्य है। मानव धर्म का पालन करना ही धर्म है। हवन पूर्णाहुति पश्चात ज्ञान - यज्ञ हर्षोल्लास के साथ संपन्न हुआ।
कथा श्रवण में पुराणिक राम देवांगन, जिलाध्यक्ष, दुर्ग जिला देवांगन समाज, सचिव राकेश देवांगन, कोषाध्यक्ष मनहरण देवांगन, उपाध्यक्ष  मनोहर देवांगन,  भूषण देवांगन, श्रीमती कीर्ति देवांगन, श्रीमती चित्रलेखा देवांगन, डोमन देवांगन,श्रीमती उषा देवांगन, मंगतू राम देवांगन, नूतन देवांगन, अजीत देवांगन सहित समाज के हजारों भागवत प्रेमी उपस्थित रहे द्य सभी श्रद्धालुओं के लिये कथा  पश्चात भोजन - प्रसादी की व्यवस्था किया गया।