तहसील से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार का बोलबाला: बहन संध्या शुक्ला

तहसील से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार का बोलबाला: बहन संध्या शुक्ला

संकल्प शक्ति। भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष शक्तिस्वरूपा बहन संध्या शुक्ला जी ने अपने एक बयान में कहा कि 'तुम डाल-डाल, तो हम पात-पात' की कहावत को चरितार्थ कर रही है बीजेपी की सरकार। भ्रष्टाचार के मामले में जहाँ कांग्रेस डाल-डाल चल रही थी, वहीं बीजेपी शासन पात-पात चलते हुए कीर्तिमान स्थापित कर रही है। कांग्रेसी शासनकाल में हुए अरबों, खरबों के घोटालों से भला कौन परिचित नहीं है? जबकि बीजेपी भ्रष्टाचार समाप्त कर देने की बात तो करती है, लेकिन पूरे देश में रिश्वतखोरी, कालाबाज़ारी, मिलावटखोरी और मँहगाई चरम पर है। शायद सत्ता पर बैठे राजनेता देश की आवाम को आज भी मूर्ख समझ रहे हैं, कि वे झूँठ भी कहेंगे, तो उसे देश की जनता आँख मुँदकर सच मान लेगी।

क्या बीजेपी ने आज तक भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास किया? 

तहसील, थानों से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। नरेन्द्र मोदी यदि अपने आपको राष्ट्ररक्षक मानते हैं, तो बताएं कि उनकी रैलियाँ किनके पैसों के बल पर आयोजित होती हैं? उन्हीं भ्रष्टाचारियों के बल पर, जिन्हें बीजेपी ने शरण दे रखी है।

बहन संध्या शुक्ला जी ने कहा कि रोजगार के अवसर सृजन करने और कालाधन के नाम पर जनता को मूर्ख बनाया गया। देश में भ्रष्टाचारयुक्त चुनाव प्रणाली अपनाकर मंहगाई को चरमसीमा पर पहुंचा दिया गया है, खाद्य पदार्थों के मूल्य लगातार बढ़ रहे हैं और आमजनता मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। जबकि, मोदी सरकार भ्रष्टाचार समाप्त करने व विकास के दावे करते थक नहीं रही है और हर वर्ष नया शिगूफा छोड़कर जनता को मूर्ख बनाया जा रहा है।  

देश की जनता को अच्छे दिनों का सपना दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशहित की बात तो करते हैं,  लेकिन क्या वे अपने शासनकाल के आठ वर्षों में व्याप्त भ्रष्टाचार (रिश्वतखोरी) और मंहगाई पर नाममात्र को भी नियंत्रण लगा सके हैं? ऐसे राष्ट्रवाद और विकास का क्या फायदा, जब आमजनमानस ही मंहगाई और भ्रष्टाचार तले कुचली जा रही हो?
  
प्रशासनिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार

वैसे तो भ्रष्टाचार कई तरह के हो सकते हैं, लेकिन प्रशासनिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार समाज को सर्वाधिक प्रभावित करते हैं। यदि इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो देश की व्यवस्था को घुन लग सकता है।  
गौरतलब है कि राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार परस्पर गठजोड़ से पनपते हैं और भ्रष्ट राजनेता नौकरशाही की मदद के बिना सरकारी व जनधन की लूट नहीं कर सकते। मँहगाई बढऩे का कारण भी यह है कि इस भ्रष्टाचार में निजी क्षेत्र और कॉरपोरेट पूँजी की भूमिका भी शामिल होती है। बाज़ार की प्रक्रियाओं और शीर्ष राजनीतिक-प्रशासनिक मु$कामों पर लिए गये निर्णयों के बीच साठगाँठ के बिना यह भ्रष्टाचार इतना बड़ा रूप नहीं ले सकता।  

राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को दो श्रेणियों में बाटा जा सकता है। प्रथम-सरकारी पद पर रहते हुए पद का दुरुपयोग करके किया गया भ्रष्टाचार और द्वितीय-राजनीतिक या प्रशासनिक हैसियत को बनाये रखने के लिए किया जाने वाला भ्रष्टाचार। पहली श्रेणी में निजी क्षेत्र को दिये गये ठेकों और लाइसेंसों के बदले लिया गया कमीशन, हथियारों की ख़रीद-बिक्री में लिया गया कमीशन, फर्जीवाड़े और अन्य आर्थिक अपराधों द्वारा जमा की गयी रकम, टैक्स-चोरी में मदद और प्रोत्साहन से हासिल की गयी रकम, राजनीतिक रुतबे का इस्तेमाल करके धन की उगाही, सरकारी प्रभाव का इस्तेमाल करके किसी कम्पनी को लाभ पहुँचाने और उसके बदले रकम वसूलने और फायदे वाली नियुक्तियों के बदले वरिष्ठ नौकरशाहों और नेताओं द्वारा वसूले जाने वाले अवैध धन।
इसी तरह तहसील व थानों से लेकर हर शासकीय एजेंसियों के अधिकारियों, कर्मचारियों के द्वारा आम लोगों से ली जाने वाली रिश्वत जैसी गतिविधियाँ पहली श्रेणी में आती हैं, जबकि दूसरी श्रेणी में चुनाव लडऩे के लिए पार्टी-फण्ड के नाम पर उगाही जाने वाली राशि, वोटरों को ख़रीदने की कार्रवाई, बहुमत प्राप्त करने के लिए विधायकों और सांसदों को ख़रीदने में ख़र्च किया जाने वाला धन, संसद-अदालतों, सरकारी व समाजिक संस्थाओं और मीडिया से अपने पक्ष में फैसले लेने या उनका समर्थन प्राप्त करने के लिए ख़र्च किये जाने वाले संसाधन और सरकारी संसाधनों के आबंटन में किया जाने वाला पक्षपात आता है।

भारत में बढ़ता भ्रष्टाचार अतिचिंतनीय

भारत में भ्रष्टाचार का रोग बढ़ता ही जा रहा है। हमारे जीवन का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा, जहां भ्रष्टाचार के असुर ने अपने पंजे न गड़ाए हों। भारत नैतिक मूल्यों और आदर्शों का कब्रिस्तान बन चुका है। आज स्थिति यह है कि देश की सबसे छोटी इकाई पंचायत से लेकर शीर्षस्तर के कार्यालयों और क्लर्क से लेकर बड़े अधिकारी तक, बिना रिश्वत लिए किसी भी फाइल को आगे ही नहीं बढ़ाते।
आज के समय में तो ईमानदारी व निष्ठा नाम की चीज रह ही नहीं गई है। हर क्षेत्र में जब तक जेब से हरे-हरे नोटों के दर्शन नहीं कराये जाएं, तब तक हर काम कछुआ चाल से ही चलता है, लेकिन जैसे ही नोटों की गर्मी पैदा होती है, काम में तेजी आ जाती है।
भ्रष्टाचार की दीमक हमारी सारी व्यवस्था को खोखला कर रही हैं और आज भारत भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंस चुका है। हमारे नैतिक मूल्य और आदर्श सब स्वाहा हो चुके हैं।  

सबसे छोटा और सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है रिश्वतखोरी

भ्रष्टाचार का सबसे छोटा और सबसे बड़ा रूप रिश्वतखोरी है। आए दिन समाचारपत्रों में रिश्वत के मामले उज़ागर होते रहते हैं, लेकिन यह रुकने का नाम नहीं ले रहा है, क्योंकि आज चाहे सरकारी क्षेत्र हों या निजी क्षेत्र हों, सभी रिश्वतखोरी के रंग में रंगे हुए हैं। लोगों में जहाँ रिश्तत देकर काम निकलवाने की प्रवृत्ति घर करती जा रही है, वहीं रिश्वत लेना नौकरशाहों की बपौती बन चुकी है।
आमजनमानस में प्राय: यह धारणा बन गई है कि रिश्वत दिए बिना कोई काम हो ही नहीं सकता है और सच भी यही है। इसलिए आज हर मौके पर और हर काम के लिए रिश्वत दी और ली जा रही है। सरकारी दफ्तरों में रिश्वत लेने का सिलसिला बहुत पुराना है। एक सर्वे के अनुसार, रिश्वत मांगने के मामले में तहसील और पुलिस महकमा सबसे ऊपर है।