बिलासपुर (मोरज देशमुख)। हाल ही में हुए दर्दनाक रेल हादसे में एक मासूम बच्चा पलभर में अनाथ हो गया। इस दुर्घटना में उसके माता-पिता और नाना-नानी की मौत हो गई। अब वह इस दुनिया में बिल्कुल अकेला रह गया है। उसकी मासूम आंखों में अब सिर्फ़ सवाल हैं—“क्यों?”
रेलवे विभाग की प्रारंभिक जांच के अनुसार, हादसे की वजह ऑटो सिग्नल का फेल होना मानी जा रही है। यानी यह मानवीय नहीं, बल्कि तकनीकी त्रुटि का परिणाम था। लेकिन सवाल यह है कि जब गलती मशीन की हो, तो सज़ा गरीब परिवारों को क्यों?
सरकार ने मृतकों के परिजनों को रेलवे और राज्य सरकार से मिलाकर कुल 15 लाख रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है। लेकिन क्या इतना मुआवज़ा एक जीवन की कीमत चुका सकता है? क्या गरीब और अमीर की मौत में भी संवेदना का अलग-अलग पैमाना होना चाहिए?
यह बच्चा, जिसने राज्योत्सव के समय अपने पूरे परिवार को खो दिया, अब सिर्फ़ एक व्यक्ति नहीं रहा — यह “छत्तीसगढ़” की आत्मा का प्रतीक है।
आज आवश्यकता है कि सरकार, रेलवे और समाज — सभी मिलकर आगे आएं। राज्य सरकार को इस बच्चे को गोद लेकर उसके वर्तमान और भविष्य की ज़िम्मेदारी स्वयं स्वीकार करनी चाहिए।
राज्य की पहचान केवल त्यौहारों या झांकियों से नहीं होती, बल्कि ऐसे बच्चों की मुस्कान से होती है जिनके सिर पर किसी का साया नहीं रहा।
अगर हम इस बच्चे को अपनाते हैं, तो यह सिर्फ़ उसकी नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की जीत होगी।
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