बालाघाट। इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय बालाघाट में पुरातत्व से संबंधित विभिन्न सामग्रियों का समावेश है। इसी तारतम्य में हिन्दी मुद्रलेखन टंकण मशीन जिसका चलन अब समाप्त हो चुका है लेकिन इसका इतिहास बहुत स्वर्णिम रहा है। जिससे की आगे आने वाली पीढ़ीयों को इस मशीन की उपयोगिता के संबंध में जानकारी होना आवश्यक है और यह तभी संभव है जब इस मशीन को पुरातत्व शोध संस्थान में समर्पित किया जा सके। 05 अक्टूबर को हिन्दी टंकण मशीन को एक साधे समारोह में कार्यालय इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय बालाघाट को समर्पित किया गया। इस अवसर पर शोध संस्थान के आचार्य वीरेन्द्र गहरवार, राधेश्याम महेश, अमरेश परिहार, आशीष सेन्द्रे उपस्थित रहे।
इस संबंध में जानकारी देते हुए राधेश्याम महेश ने बताया कि 20 वर्ष पूर्व टंकण मशीन को खरीदा गया था। उस दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं में इसका उपयोग किया गया था जिसका वर्तमान में चलन समाप्त होने की कगार पर है। जिसके चलते स्व-प्रेरणा से इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय बालाघाट में समर्पित किया गया। ताकि आने वाली पीढि़यों को इसकी जानकारी मिल सके।
इस अवसर पर श्री गहरवार ने बताया कि यह पहला अवसर है जब हिन्दी टंकण मशीन श्री महेश द्वारा शोध संस्थान में प्रदाय किया गया है जो कि निश्चित तौर पर यहां पर आने वाले पर्यटको एवं आम जनमानस के लिए जानकारी योग्य होगी। अमरेश परिहार ने बताया कि भारत में पहला हिन्दी टाइपराइटर बाज़ार में 1930 के दशक में आया था, लेकिन देवनागरी की जटिलता के कारण इसे बनाना मुश्किल था। 1955 में पहली बार गोदरेज एंड बॉयस ने भारत में टाइपराइटर का निर्माण किया था जिसके बाद यह धीरे.धीरे कार्यालयों में इस्तेमाल होने लगा। इलेक्ट्रिक टाइपराइटर 1950-60 के दशक में आए लेकिन शुरुआती दौर में मैनुअल टाइपराइटरों की मांग अधिक थी और बाद में कंप्यूटर के आने से इनका चलन कम हो गया।
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