बालोद। जिले के डौंडी तहसील अंतर्गत ग्राम कुसुमकसा में अवैध कब्जे के बढ़ते मामले प्रशासन की नाकामी की ओर इशारा कर रहे हैं। दिल्ली से सख्त निर्देश और लगातार अखबारों में मुद्दा उठने के बावजूद, जिम्मेदार अधिकारी अब भी आदेश, नियम और दिशानिर्देशों की खोज में ही लगे हुए हैं, जिससे अवैध कब्जाधारियों के हौसले बुलंद हैं। प्रशासन के इस रवैये से आम
लोग हंसी, गुस्सा और शर्म सभी महसूस कर रहे हैं। सवाल ये है कि आखिर कब चलेगा सुशासन का बुलडोजर, और कब दिखेगा कानून का असली डर?
ग्राम पंचायत कुसुमकसा में अवैध कब्जे ने प्रशासन के व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। दो प्रमुख नाम— नईम कुरैशी (सेवानिवृत्त वनकर्मी के पुत्र) और कुसुमकसा धान खरीदी केंद्र के चपरासी वहीद अली— गांव में खुलेआम वर्षों से अवैध कब्जा करके बैठे हैं। छत्तीसगढ़ वन विभाग के पूर्व कर्मचारी के बेटे ने न सिर्फ कानून की अनदेखी की, बल्कि प्रशासन के मुंह पर पान की पीक भी थूक दी है। हैरानी की बात यह है कि अखबारों, मीडिया और समाज में केस के चर्चाओं के बाद भी हाल - फिलहाल कोई ठोस कार्यवाही सामने नहीं आई है।
अब आलम ये है कि प्रशासन और जिम्मेदार अधिकारी नियमों की किताबें पलट रहे हैं, ताकि कोई ढील निकाल सकें या कानूनी प्रक्रिया की आड़ में मामले को आगे बढ़ा दें। अवैध कब्जाधारी नईम कुरैशी ने बालोद एसपी को अवैध कब्जे का समाचार प्रकाशित करने वाले संवाददाता के खिलाफ अवैध वसूली व मानसिक प्रताड़ना की झूठी शिकायत पेश कर दी है। अब आगे देखना होगा कि पुलिस क्या जांच करती है।
किसी भी अवैध कब्जे के मामले में सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर कड़े निर्देश जारी किए जा चुके हैं, राज्य के स्थानीय प्रशासनिक अफसरों की सुस्ती सबके सामने है। जिसकी रिपोर्ट्स के अनुसार, बार-बार नोटिस, सख्त कार्यवाही के आदेश और मीडिया की प्रकाशित खबरों के बावजूद बालोद के हालात जस के तस हैं। उदाहरण स्वरूप, गुरूर और राष्ट्रीय राजमार्ग पर भी प्रशासन ने कई व्यावसायिक और निजी अवैध कब्जाधारियों को कानूनी नोटिस भेजा है, लेकिन जमीन पर फर्क नजर नहीं आता।
जबकि कानून साफ कहता है कि अवैध कब्जा करने वालों पर रिकॉर्ड के आधार पर तुरंत हटाने की प्रक्रिया अपनाई जाए, वरना भू-प्रबंधन कानून के नियम, विशिष्ट राहत अधिनियम 1963 और आईपीसी की धारा 441 के तहत सख्त कार्यवाही की जाए। सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करना, नोटिस देना, पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराना और तत्काल कार्यवाही (बुलडोजर एक्शन) इसके वैध कानूनी तरीके हैं। जरूरत है इच्छाशक्ति और त्वरित निर्णय की, लेकिन यहां अफसर ‘ऑर्डर की फाइल’ और ‘कागजी कार्यवाही’ में ही पड़े हुए हैं।
अगर इसी तरह प्रशासन सुस्त और ढिलाई भरा रवैया जारी रखेगा तो वह दिन दूर नहीं, जब लोग कलेक्टर के बंगले या सरकारी इमारतों तक पर कब्जा जमा लेंगे। ये मामले केवल ग्रामीण ज़मीन या पंचायत तक सीमित नहीं बल्कि पूरे सिस्टम के लिए चुनौती बनते जा रहे हैं। आम जनता अभी भी उम्मीद में है कि कब प्रशासन नींद से जागेगा और कानून का बुलडोजर चलाकर अवैध कब्जाधारियों को सबक सिखाएगा। जब तक विलंब और सुस्ती रहेगी, तब तक कानून का डर जनता और अतिक्रमणकारियों दोनों में समाप्त होता रहेगा।
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