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संवेदना, संयम और सकारात्मक सोच से होता है आत्मकल्याण : साध्वी लब्धियशा श्रीजी

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नगपुरा। श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चल रही श्री आचारांग सूत्र प्रवचन श्रृंखला में साध्वी श्री लब्धियशा जी म.सा. ने कहा कि परमात्मा भगवान महावीर स्वामी ने जीव को आरंभ-समारंभ से बचने की प्रेरणा दी है। अहिंसा का मूल अर्थ है – किसी भी जीव को मन, वचन और काया से दुःख न पहुँचाना। उन्होंने स्पष्ट किया कि आरंभ (कार्य की तैयारी) और समारंभ (उसका आरंभ) दोनों ही किसी न किसी रूप में हिंसा से जुड़े होते हैं। अतः संयम का पालन करते हुए आत्मा की शुद्धि हेतु हमें इनसे बचना चाहिए।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि हमारी सोच और विचार ही हमारे जीवन के प्रेरक तत्व हैं। जीवन वही लौटाता है जो हम बोते हैं – यदि सकारात्मक सोच बोई जाए तो वह महान कार्यों का सृजन करती है, वहीं नकारात्मक सोच जीवन को विनाश की ओर ले जाती है। उन्होंने कहा कि “सकारात्मक सोच जीवन का प्रसाद है और नकारात्मक सोच जीवन का अभिशाप।”
संवेदना का संकट, संबंधों में दूरी..
उन्होंने सामाजिक संवेदना के ह्रास पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पहले समय में पड़ोसी भी परिवार का हिस्सा समझा जाता था। उनकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर लोग सहायतार्थ आगे आते थे, परंतु आज सामाजिक ढाँचा इतना बदल गया है कि पड़ोसी की मृत्यु की खबर तक चार-पाँच दिन बाद दुर्गंध से पता चलती है। यह चेतावनी है कि मनुष्य संवेदनशीलता और भावना खो रहा है।
साध्वी श्रीजी ने आगे कहा कि जीवन में साधनों से अधिक आवश्यक है भावना और संवेदना। उन्होंने स्पष्ट किया कि भावना किस उद्देश्य से प्रकट हो रही है, यह जीवन के परिणामों को तय करती है। आज का मानव धन को ही सर्वस्व मान रहा है, जबकि शास्त्रों के अनुसार धन की तीन गतियाँ होती हैं – दान, भोग और नाश। इसमें दान को सर्वश्रेष्ठ बताया गया है, जो आत्मकल्याण की दिशा में अग्रसर करता है।

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प्रेम और करुणा से जीवन होता है धन्य ..
साध्वी श्रीजी ने प्रेम, करुणा और परोपकार की भावना को मानवता की असली पूंजी बताया। उन्होंने कहा कि दूसरों के प्रति करुणा और सहयोग का भाव रखकर हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं, बल्कि समाज को भी सशक्त कर सकते हैं।
चातुर्मास में भक्ति व आराधना का भावपूर्ण माहौल..
श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मास के अंतर्गत देशभर से आए सैकड़ों श्रद्धालु नियमित प्रवचन, पूजन व अनुष्ठानों के माध्यम से आत्मिक उन्नति की साधना कर रहे हैं। प्रवचनों के साथ प्रतिदिन विविध धार्मिक आयोजनों से तीर्थस्थल भक्तिमय बना हुआ है।
श्रावण शुक्ल प्रतिपदा को स्नात्र महोत्सव का आयोजन भव्यता के साथ संपन्न होगा। वहीं श्रावण शुक्ल तृतीया से नवमी तक पूज्य जैनाचार्य कविकुलकिरीट श्री लब्धिसूरी गुरुदेव की 64वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आठ दिवसीय श्री नेमि-लब्धि महोत्सव का आयोजन होगा।
इस महोत्सव के अंतर्गत –
विभिन्न पूजन
गुणानुवाद
उवसग्गहरं महापूजन
श्री नेम संयम अहोभाव
गिरनार भाव यात्रा जैसे अनेक हृदयस्पर्शी मांगलिक अनुष्ठान आयोजित होंगे।
श्रद्धालुओं में इस आयोजन को लेकर विशेष उत्साह देखा जा रहा है, जो आत्मकल्याण एवं सामूहिक साधना का अनुपम उदाहरण बन रहा है।

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