छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच का महत्वपूर्ण फैसला, मृत्यु पूर्व दिया बयान ही दोषसिद्धी के लिए विश्वसनीय माना जाएगा

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बिलासपुर।  द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश बलौदा बाजार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। डिवीजन बेंच ने मुत्यु पूर्व बयान के आधार पर कोर्ट द्वारा दिए जाने वाले फैसले के संबंध में महत्वपूर्ण आदेश पारित किया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि ऐसे मृत्यु पूर्व बयान स्वीकार किए जाने चाहिए जिसमें बयान देने वाले या वाली बिा किसी दबाव व झलकपट से दूर पूरी मानसिकता के साथ मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी आपबीती बता रहा हो। डिवीजन बेंच ने इस टिप्प्णी के साथ द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश बलौदा बाजार के फैसले को बरकरार रखते हुए अपील खारिज कर दी है।

बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के ग्राम करमाडीह निवासी धरमदास चतुर्वेदी ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में अपील पेश की थी। 0 क्या है मामला ग्राम सिरसा निवासी गौतम धृतलहरे की शादी मृतक दुलौरिन बाई से एक साल पहले हुई थी। गौतम पर आरोप है कि पत्नी दुलौरिन बाई के ऊपर मिट्टी तेल डालकर आग लगा दी थी। जिससे उसकी मौत हो गई। घटना तिथि 20/03/2012 को नायब तहसीलदारद्वारा मृत्यु पूर्व बयान दर्ज किया गया था। मृत्यु पूर्व बयान में बुरी तरह घायल पत्नी ने बताया कि मामूली विवाद पर उस पर मिट्टी तेल डालकर पति ने आग लगा दी। मृतका की मां, पिता और बहन ने भी इसकी पुष्टि की। मृतका को इलाज के लिए पहले बलौदा बाजार के शासकीय अस्पताल लेकर आए थे। इसके बाद, उसे बेहतर इलाज के लिए रायपुर के मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित कर दिया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण गंभीर रूप से जलने के कारण बताया गया। मुत्यु पूर्व बयान के आधार पर पुलिस ने पति गौतम धृतलहरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर जेल भेज दिया। मामले की सुनवाई द्वितीय अपर सत्र न्यायाधीश बलौदा बाजार के कोर्ट में प्रारंभ हुई। गवाहों के बयान के आधार पर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर विश्वास नहीं किया और आरोपी पति को संदेह का लाभ देते हुए रिहाई का आदेश दिया।
अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने डिवीजन बेंच के समक्ष पैरवी करते हुए कहा कि सत्र न्यायालय विषय-वस्तु को समझने में पूरी तरह से विफल रहा। मृत्यु पूर्व बयान मृतक द्वारा मानसिक रूप से सचेत अवस्था में दिया गया था और नायब तहसीलदार सुंदरलाल हिरवानी द्वारा सिद्ध किया गया है। घटना सुबह 11 बजे हुई और मृत्यु पूर्व बयान दोपहर 1 बजे दर्ज किया गया, जो घटना के तुरंत बाद था, इसलिए ऐसे मृत्यु पूर्व बयान पर भरोसा करने के लिए कोई अस्पष्टता नहीं बची थी। स्वतंत्र गवाह होने के नाते, उक्त मृत्यु पूर्व बयान को खारिज नहीं किया जा सकता था। अधिवक्ता ने निचली अदालत के फैसले को रद्द करने और हत्या के आरोपी को दंड देने की मांग की।
आरोपी के अधिवक्ता ने कुछ इस तरह किया जिरह मृत्यु पूर्व बयन उचित संदेह से परे नहीं है, डॉ. भूपेंद्र साहू द्वारा साबित किया गया था, मृतक गवाही देने के लिए उचित मानसिक स्थिति में नहीं थी। डॉक्टर से किसी प्रमाण पत्र के अभाव में, मृत्यु पूर्व बयान पर भरोसा नहीं किया जा सकता था, खासकर तब जब डॉ. शिवनारायण मांझी और डॉ. आशुतोष शर्मा के अनुसार उंगलियां पूरी तरह से जल गई थीं, लेकिन मृत्यु पूर्व बयान में अंगूठे का निशान पाया गया। उन्होंने आगे कहा कि मृत्यु पूर्व बयान प्रश्नावली के रूप में नहीं था, जो आमतौर पर किया जाता है,।
क्या है पुलिस डायरी में मृतका दुलौरिन बाई और आरोपी पति गौतम धृतलहरे के बीच विवाद हुआ था, पत्नी अपने मायके जाना चाहती थी। पति ने इसका विरोध किया, विवाद बढ़ गया और परिणामस्वरूप मृतका को घर के अंदर खींचकर ले गया। पति ने उस पर मिट्टी का तेल डाला और आग लगा दी, जिससे वह 98 प्रतिशत जल गई। सबसे पहले जब उसे बलौदा बाजार के अस्पताल में लाया गया तो उसके दाहिने पैर को छोड़कर पूरे शरीर में 98 प्रतिशत जलन थी और उसे रायपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था। 0 चिकित्सकों ने बताया,100 फीसदी जल गई थी,कोयले की तरह काला हो गया था शरीर डॉक्टर भूपेंद्र साहू ने कहा है कि एक कांस्टेबल सोहन रात्रे के बुलाने पर उन्होंने घायल की जांच की और पाया कि वह 98 प्रतिशत जली हुई है। जिरह में बताया गया कि दोपहर 1 बजे जांच की गई और दोनों हाथ अंगुलियों समेत जल गए थे। शुरुआती दवा दी गई, इसके बाद उसे रायपुर ले जाया गया। डॉ. आशुतोष शर्मा ने मृतिका दुलौरिन बाई के रायपुर अस्पताल में भर्ती होने के दस्तावेज साबित किए। मेडिकल कॉलेज, रायपुर विभाग के बर्न यूनिट के दस्तावेज से पता चलता है कि उसके शरीर पर 100त्न गहरा जला हुआ हिस्सा था। डॉक्टर ने आगे कहा कि 20/03/2012 को शाम 4 बजे उन्होंने सबसे पहले मृतिका की जांच की थी। उन्होंने मरीज से पूछा कि यह कैसे हुआ लेकिन वह बोल नहीं पा रही थी क्योंकि वह मानसिक और शारीरिक रूप से ठीक स्थिति में नहीं थी। डॉक्टर ने आगे कहा कि पूरी चमड़ी निकल गई थी और दोनों हाथ पूरी तरह जल गए थे और कोयले की तरह काला हो गया था। उन्होंने आगे बताया कि 20/03/2012 से लेकर 24/03/2012 को उनकी मृत्यु तक वह बोलने की मानसिक स्थिति में नहीं थीं। 0 गवाहों के बयान अलग-अलग कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा है कि प्रेमलाल भारद्वाज, रतनलाल और दुलीचंद गेंदले के बयानों में विसंगतियां हैं, जो मृत्यु पूर्व बयान पर हस्ताक्षरकर्ता हैं और सुंदरलाल हिरवानी नायब तहसीलदार ने केवल मृत्यु पूर्व बयान का समर्थन किया है। एक अन्य मौखिक मृत्यु पूर्व बयान जो कमला बाई मां और सुनीता बहन के समक्ष दिया गया बताया गया है, उसकी पुष्टि पिता धरमदास द्वारा नहीं की गई है, जो उनके साथ वहां मौजूद थे। इन विसंगतियों को देखते हुए, मृत्यु पूर्व बयान को मिसाल नहीं बनाया जा सकता है। गवाहों के बयानों के बीच विसंगतियां आपस में जुड़ी हुई हैं, जिससे संदेह पैदा होगा और इसे स्वीकार करने में बाधा उत्पन्न होगी। इन महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ डिवीजन बेंच ने मृतका पिता की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है।

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