होम बेस केयर में रह रहे कोरोना के मरीजों को शासकीय चिकित्सा सुविधा अथवा निजी चिकित्सा सुविधा का विकल्प लेने की छूट

होम बेस केयर में रह रहे कोरोना के मरीजों को शासकीय चिकित्सा सुविधा अथवा निजी चिकित्सा सुविधा का विकल्प लेने की छूट

कोविशील्‍ड की पहली और दूसरी डोज के बीच इंटरवल को 4-6 हफ्तों के बजाय 4-8 हफ्ते कर दिया गया है। केंद्र सरकार ने सोमवार को सभी राज्‍यों को इस संबंध में निर्देश जारी किए। एक चिट्ठी में स्‍वास्‍थ्‍य सचिव राजेश भूषण ने कहा, "मौजूद वैज्ञानिक सबूतों को देखते हुए, ऐसा लगता है कि अगर कोविशील्‍ड की दूसरी डोज 6-8 हफ्तों के बीच लगाई जाए तो सुरक्षा बढ़ जाती है लेकिन 8 हफ्तों से ज्‍यादा के बाद नहीं।" इस बदलाव के बाद आपके मन में जो भी सवाल हैं, उनके जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

केंद्र सरकार की नई गाइडलाइंस में क्या है?

कोरोना वैक्सीन पर केंद्र सरकार की नई गाइडलाइंस में क्या है?

सरकार ने कोविशील्‍ड का डोजिंग इंटरवल क्‍यों बढ़ाया?

स्‍वास्‍थ्‍स मंत्रालय ने यह फैसला एक्‍सपर्ट्स के दो ग्रुप्‍स- नैशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑफ इम्‍युनाइजेशन (NTAGI) और नैशनल एक्‍सपर्ट ग्रुप ऑफ वैक्‍सीन एडमिनिस्‍ट्रेशन फॉर कोविड-19 (NEGVAC) की सलाह पर लिया है। वैक्‍सीन के क्लिनिकल ट्रायल्‍स से मिले सबूतों को ध्‍यान में रखा गया। कोविशील्‍ड वैक्‍सीन (AZD122) पर दुनियाभर में ट्रायल हुए। कुछ डेटा से पता चलता है कि वैक्‍सीन के डोज का अंतराल बढ़ाने पर यह ज्‍यादा असर करती है।

कोविशील्‍ड के डोज इंटरवल पर रिसर्च क्‍या कहती है?

AZD1222 के ट्रायल्‍स में सामने आया कि अगर दूसरी डोज पहली के छह हफ्ते या उसके बाद दी जाए तो वैक्‍सीन की एफेकसी बढ़ जाती है। यूके, ब्राजील और साउथ अफ्रीका में हुए ट्रायल्‍स पर फरवरी की एक स्‍टडी बताती है कि 6-8 हफ्तों पर टीके देने पर वैक्‍सीन की एफेकसी 59.9% रही, 9-11 हफ्तों के अंतराल पर डोज लगी तो एफेकसी 63.7% हो गई। वहीं जब दो टीकों के बीच समय को 12 हफ्ते या उससे ज्‍यादा किया गया तो एफेकसी 82.4% तक पहुंच गई। यह स्‍टडी द लैंसेट को सौंपी गई थी मगर अभी इसका पिअर-रिव्‍यू नहीं हुआ है।

ऑक्‍सफर्ड यूनिवर्सिटी और अस्‍त्राजेनेका के अनुसार, अमेरिका, चिली और पेरू में चले फेज 3 क्लिनिकल ट्रायल्‍स के नतीजे बताते हैं कि अगर दो डोज के बीच 4 हफ्तों से ज्‍यादा का अंतर हो तो वैक्‍सीन 79% असरदार है।

...तो फिर 8 हफ्ते ही क्‍यों, इससे ज्‍यादा क्‍यों नहीं?

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भूषण की चिट्ठी के अनुसार, एक्‍सपर्ट ग्रुप का कहना है कि अगर वैक्‍सीन के डोज इंटरवल को 8 हफ्तों से ज्‍यादा रखा तो उससे मिलने वाली प्रोटेक्‍शन नहीं बढ़ेगी। NTAGI के डॉ एनके अरोड़ा के अनुसार, इससे ज्‍यादा डोज इंटरवल रखने के पक्ष में 'अच्‍छे साइंटिफिक सबूत' नहीं थे। उन्‍होंने द इंडियन एक्‍सप्रेस से बातचीत में कहा कि 8 हफ्तों से ज्‍यादा डोज इंटरवल की सलाह उन देशों के लिए है जहां वैक्‍सीन की कमी है। भारत की स्थिति अनोखी है और हमारे पास पर्याप्‍त वैक्‍सीन है।

डॉ अरोडा़ के अनुसार, वैक्‍सीन डोज इंटरवल ज्‍यादा रखने पर बीच में कोविड इंफेक्‍शन का खतरा भी है। उन्‍होंने कहा, "अगर मैं पहली डोज दे दूं और फिर 12 हफ्तों तक इंतजार करूं तो ये हो सकता है कि बीच में संक्रमण हो जाए। हम ऐसा नहीं चाहते।"

टीकाकरण कार्यक्रम पर क्‍या होगा असर?

वैक्‍सीन के दूसरे डोज को देर से लगाने का मतलब ये होगा कि अब ज्‍यादा लोगों को पहली डोज जल्‍दी मिल सकेगी। सरकार को लगता है कि डोज इंटरवल बढ़ाने से प्रॉयरिटी गुप की आबादी को टीके लगाना आसान हो जाएगा। डॉ अरोड़ा ने कहा, "अब फ्लेक्सिबिलिटी है... आप 28 से 56 दिनों के बीच कभी भी वैक्‍सीन (दूसरी डोज) ले सकते हैं।"

मतलब यह कि जिन लोगों को कोविशील्‍ड की पहली डोज मिल चुकी है, उनकी दूसरी डोज की टाइमिंग में बदलाव होगा। सेकेंड डोज की तारीख करीब आने से पहले आपको SMS भेजकर सूचना दी जाएगी।