ईरान पहुंचा सुलेमानी का शव, नम आंखों से सैनिकों ने दी श्रद्धांजलि

ईरान पहुंचा सुलेमानी का शव, नम आंखों से सैनिकों ने दी श्रद्धांजलि

दक्षिणापथ, नगपुरा/दुर्ग। साधक की चार विशेषताएं होती है। साधक, आत्मवान् होता है, धर्मवान् होता है, वेदवान् होता है और ब्रह्मवान् होता है। उक्त उद्गार मुनि श्री प्रशमरति विजय जी (देवर्धि साहेब) ने श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला में व्यक्त किए!! श्री आचारांग सूत्र की व्याख्या करते हुए मुनि श्री ने बताया कि साधक सोचता रहता है कि मैं पिछले जनम में से इस जनम में आया तो साथ में कोई सामान नहीं लाया था और किसी व्यक्ति को भी नहीं लाया था। मैं अकेला आया था और खाली हाथ आया था। मैं जब अगले जनम के लिए महाप्रयाण करूंगा तब भी कोई सामान साथ में नहीं ले जाऊंगा और किसी व्यक्ति को भी संग में नहीं ले जाऊंगा। मैं अकेला जाऊंगा और खाली हाथ जाऊंगा। वर्तमान जीवन के प्रत्येक कार्य को करते समय साधक याद रखता है कि मैं आत्मा हूं जो शरीर से, परिवार से एवं साधन संसाधन से बिल्कुल अलग है। जो साधक ऐसी सोच अखंड बनाए रखता है वह आत्मवान् होता है।
साधक धर्म का ज्ञान अधिक से अधिक उपार्जित करता है। साधक जब किसी से वार्तालाप करे तो उस वार्तालाप के केंद्र में केवल धर्म होता है। साधक जब विचारों में खो जाए तो विचारों के केंद्र में केवल धर्म होता है। जिस के वार्तालाप में एवं विचारों में धर्म का आधिपत्य नहीं बना है वह अभी साधक बना नहीं है। जिस के पास धर्म का ज्ञान ही नहीं है धर्म संबंधी वार्तालाप और विचार कर ही नहीं पायेगा। धर्म संबंधी उत्कृष्ट ज्ञान उपार्जन करता रहता है एवं ज्ञान की छाया में ही वार्तालाप एवं विचार रचाता है वह ज्ञानवान् होता है।
साधक धर्म के मूलसूत्रों का अभ्यासु होता है। उसे कंई सूत्र कंठस्थ होते हैं, वह विधविध शास्त्रों का श्रवण एवं पठन करता ही रहता है। साधक, सूत्रों के अर्थ को सिखता है और याद रखता है। सूत्र का जो अर्थ है वही सूत्र की शक्ति है। साधक सूत्रों के अर्थो का ज्ञाता होता है अत: उसके चिंतन में गहराई एवं सच्चाई झलकती है। इसी कारण साधक वेदवान् होता है।
साधक सुख से दूर रह सकता है। सामान्य आदमी सुख को देखकर पिघल जाता है लेकिन साधक सुख से प्रभावित कम होता है। साधक प्रतिदिन किसी सुख का त्याग करता रहता है। साधक कभी मिठाई छोडता है, कभी आराम छोडता है, कभी सुखभोग छोडता है, कभी मान सन्मान छोडता है . साधक सुख को टालकर निजानंद मे मगन रहता है अत: उसे ब्रह्मवान् भी कहा जाता है। आप धर्म के साथ जुडे हो पर इस भूमिका तक आप पहुंचें या नहीं इसका चिंतन कीजिए।