कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा फ्लैग मार्च निकाला गया, नागरिकों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, मास्क का उपयोग के सबंध में किया गया जागरूक

कोरोना की तीसरी लहर से बचाव के लिए जिला प्रशासन व पुलिस द्वारा फ्लैग मार्च निकाला गया, नागरिकों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने, मास्क का उपयोग के सबंध में किया गया जागरूक
नई दिल्ली । कोरोना के मुश्किल दौर में जहाँ पूरे देश को बजट 2022-23 से उम्मीद थी, उनकी उम्मीदों पर पानी फेरते हुए भाजपा शासित केंद्र सरकार ने एक निराशाजनक और नकारात्मक बजट पेश किया। किसान विरोधी यह बजट किसानों के साथ-साथ रोजगार की तलाश करते युवाओं और मध्यवर्ग के खिलाफ है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को एक प्रेस- कांफ्रेंस के दौरान यह बातें कही। उन्होंने कहा कि यह बजट कृषि सेक्टर हेल्थ सेक्टर, एजुकेशन सेक्टर के खिलाफ है। महामारी से सीख मिली कि हेल्थ सेक्टर को बेहतर किया जाए लेकिन केंद्र सरकार ने बजट को ज्यों का त्यों ही रखा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट करते हुए कहा कि कोरोना काल में लोगों को बजट से बहुत उम्मीद थी लेकिन इस बजट ने लोगों को मायूस किया। आम जनता के लिए इस बजट में कुछ नहीं है साथ ही महंगाई कम करने के लिए भी कुछ नहीं किया गया है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि एक साल से देश के अन्नदाता किसान एमएसपी की मांग करते हुए तीनों काले कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे। दबाव में आकर केंद्र में बैठी भाजपा ने इन कानूनों को वापस तो ले लिया, लेकिन उसके बदले में किसान विरोधी बजट के द्वारा किसानों को धोखा देने का काम किया है। केंद्र सरकार ने इस बजट में एमएसपी का बजट जो पिछले साल तक कुल बजट का 2.48 लाख करोड़ था उसे घटाकर 2.37 लाख करोड़ कर दिया है। उन्होंने कहा कि एक ओर जहाँ केंद्र सरकार 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की बात कर रही थी, उसकी बजाय केंद्र कृषि का कुल बजट भी कम कर रही है। पिछले साल तक कृषि सेक्टर का कुल बजट में 4.25 फीसद तक हिस्सा था उसकी जगह इस साल ये सिमट कर 3.84 फीसद ही रह गया है। केंद्र सरकार क्या चाहती है कि किसान बर्बाद हो जाए। देश की कुल नौकरियों का 60 फीसद आज भी कृषि क्षेत्र से है, उस दशा में बजट को कम करना किसानों को चपत लगाना है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि पूरा देश 2 साल से कोरोना की महामारी से जूझ रहा है। महामारी के दौरान एक बहुत बड़ी सीख मिली कि भारत में हेल्थ-इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने की जरुरत है। लेकिन केंद्र सरकार ने हेल्थ-इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के बजाय कठोरता के साथ उसपर से आँख फेर ली है और स्वास्थ्य बजट पिछले साल की तरह ज्यों का त्यों बना हुआ है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार जबतक शिक्षा का बजट कुल जीडीपी का 6 फीसद नहीं होता है, तब तक इस पालिसी को पूरी तरह क्रियान्वित नहीं की जा सकता। लेकिन केंद्र सरकार शिक्षा का बजट साल दर साल कम करते जा रही है। पिछले साल शिक्षा बजट कुल बजट का 2.67 फीसद था। केंद्र सरकार ने उसे घटाकर इस साल 2.64 फीसद कर दिया। साथ ही स्किलिंग का बजट भी 30 फीसद तक घटा दिया है। कोरोना काल में जहाँ एजुकेशन सेक्टर को इतना नुकसान हुआ, उस स्थिति में शिक्षा का घटता बजट शिक्षा के प्रति भाजपा की उदासीनता को दिखाता है। मनीष सिसोदिया ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। आज भारत में 5.5 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे है जो बेरोजगार हैं। केंद्र सरकार ने पिछले 2 सालों में अपनी पीएलआई स्कीम से एक नौकरी तक नहीं दी और अब केंद्र जुमलेबाज़ी कर रही है कि अगले 5 सालों में 60 लाख लोगों को नौकरी देंगे। मनीष सिसोदिया ने कहा कि मध्यम वर्ग देश के अर्थ व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी होता है और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने का काम करता है। कोरोना के दौरान मध्यवर्ग की कमर टूटी पर उसे उम्मीद थी कि बजट में उसे आयकर को लेकर कुछ छुट मिलेगी। इससे न केवल मध्यम वर्ग को फायदा होता बल्कि उसकी क्रयशक्ति बढ़ती, जिससे बाजार में मांग बढ़ती और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती लेकिन केंद्र सरकार ने यहां भी मध्यवर्ग की उम्मीदों पर पानी फेर दिया और उन्हें सिर्फ और सिर्फ निराश करने का काम किया है।