ईपीएफओ : न्यूनतम पेंशन व ब्याज दरों पर फैसला आज, बढ़कर तीन हजार रुपये हो सकती है पेंशन

ईपीएफओ : न्यूनतम पेंशन व ब्याज दरों पर फैसला आज, बढ़कर तीन हजार रुपये हो सकती है पेंशन

दक्षिणापथ, दुर्ग । भाजपा संगठन के पुनर्गठन की कवायद में दुर्ग जिले से लाभचन्द बाफना के नाम पर सांसद विजय बघेल व सरोज पांडे की मुहर लगते दिख रही है। पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की सर्वाधिक पसंद माने जाने वाले श्री बाफना का मनोनयन आगामी दिनों में होने की सम्भावना है। यद्यपि दिनेश देवांगन, पूर्व महापौर चंद्रिका चंद्रकार समेत राजेश ताम्रकार भी इस पंक्ति में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, किंतु स्थानीय संगठन लाभचन्द बाफना को वरीयता दे सकता है। इसी तरह भिलाई जिला भाजपा के अध्यक्ष का मनोनयन भी शेष है। भिलाई में खिलावन साहू, फनेन्द्र पांडे जैसे वरिष्ठ नेताओं के नामों पर विचार किया जा रहा है।

पिछले विधानसभा चुनाव में काफी निराशाजनक प्रदर्शन के बाद भाजपा को विपक्ष के मोर्चे पर मजबूती के साथ खड़े करने की दृष्टि से नए पदाधिकारियो का चयन महत्वपूर्ण है। मनोनयन में दीर्घकालिक बहुआयामी परिणामोन्मुखी कारकों पर ध्यान रखा जाना लाजिमी है। कांग्रेस के सत्ता संभालने के बाद विपक्ष के तौर पर भाजपा का प्रदर्शन कमोबेश लचर ही रहा है। सांसद विजय बघेल को छोड़ दे तो अन्य भाजपा नेताओं की मुखरता औसत से कमतर ही रहा है। राजनीतिक प्रेक्षक कहते है कि हाल के सालों में स्थानीयता का फैक्टर छत्तीसगढ़ की राजनीति में प्रभावी हुआ है। इस लिहाज से नए मनोनयन में संतुलन बनाना आसान नहीं होगा। रायपुर शहर जिला अध्यक्ष के लिए श्रीचंद सुंदरानी को कमान सौपा गया है, जो सिंधी समाज से है। रायपुर ग्रामीण अध्य्क्ष गुलाब टिकरिहा को अभी तक यथावत रखा गया है। संगठन के साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में श्री टिकरिहा की गहरी पैठ है। उन्हें बदलने के भी विकल्प हैं, मगर पार्टी के स्थानीय बड़े नेताओं का उन्हें समर्थन फिलहाल तो हासिल है। अलबत्ता दुर्ग जिला भाजपा अध्यक्ष की घोषणा इसी हप्ते हो सकती है। अध्य्क्ष पद के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं में कम घमासान नही है। किंतु ऊपर से मनोनयन होना तय है और कार्यकर्ताओं की राय अब ज्यादा मायने नही रख रही है। अब देखना होगा कि अध्य्क्ष पद पर कौन आसीन होता है और संगठन को कितना गति दे पाता है। आंतरिक लोकतंत्र हुआ है कमजोर यूं तो भाजपा की पहचान कैडर बेस पार्टी की रही है। कांग्रेसी नेपोटिज्म से त्रस्त आ चुके जनता की भावनाओ को भाजपा में आसरा मिला था। किंतु सत्ता प्राप्ति के कुछ सालों में कांग्रेस के वंशवाद का रोग भाजपा को भी लग गया था। पार्टी को विधानसभा चुनाव में इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा था। पर पार्टी नेताओं ने इसमें सुधार का क्रम भी आरम्भ किया। राष्ट्रीय स्तर पर भी भाजपा आज एक ही व्यक्ति के इर्द गिर्द घूम रही है। मोदी के पसन्द अमित शाह को पार्टी सुप्रीमो बनाया गया, उसके बाद पार्टी की कमान जेपी नड्डा को इसलिए ही सौपी गई क्योकि वे मोदी व शाह की हाँ में हाँ मिलाने वाले नेता है, उनकी कोई अपनी निजी महत्वकांक्षा नही है। कुछ इसी तरह का दृश्य प्रदेश भाजपा में भी चल रहा है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी का आम कार्यकर्ता इसके खिलाफ खुलकर विरोध जताने की क्षमता भी रखते है। यह फैक्टर आज भी भाजपा को कांग्रेस व अन्य परिवारवादी दलों से अलग रखती है।