दीपोत्सव में दक्षिण कोरिया के मेहमान होंगे शामिल, इंडो कोरियन पार्क का होगा लोकार्पण

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-टीबी मरीजों की पहचान के लिए डोर-टू-डोर कैंपेन, प्रदेश को टीबीमुक्त बनाने शासन द्वारा उठाए जा रहे हैं कई कदम -विश्व क्षय दिवस 24 मार्च को दक्षिणापथ, रायपुर।  टीबी (क्षय रोग) की वजह से होने वाले स्वास्थ्यगत, सामाजिक एवं आर्थिक दुष्परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने हर वर्ष 24 मार्च को विश्व क्षय दिवस मनाया जाता है। पूरी दुनिया में इस साल विश्व क्षय दिवस ‘इनवेस्ट टू एन्ड टीबी. सेव लाइव्स (Invest to End TB. Save Lives)’ की थीम पर मनाया जा रहा है। वर्ष 2023 तक छत्तीसगढ़ को टीबीमुक्त करने राज्य शासन के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो शरीर के हर अंग को प्रभावित करती है। खासतौर पर यह फेफड़ों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। टीबी माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाली बीमारी है। यह उन व्यक्तियों को जल्दी अपनी चपेट में ले लेता है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। समय पर इसके लक्षणों की पहचान और उपचार कराकर इस रोग से बचा जा सकता है। क्षय नियंत्रण कार्यक्रम के राज्य नोडल अधिकारी डॉ. धर्मेन्द्र गहवई ने बताया की प्रदेश में टीबी रोगियों की पहचान के लिए व्यापक डोर-टू-डोर कैंपेन चलाया जा रहा है। इसके तहत दो करोड़ 63 लाख से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की गई है, जिनमें से 2300 लोग इससे पीड़ित पाए गए हैं। उन्होंने बताया कि रोगियों को निर्धारित श्रेणी के अनुसार ट्रीटमेंट सपोर्टर की देखरेख में दवाई खिलाई जाती है। टीबी का इलाज कम से कम छह महीने का होता है। कुछ विशेष अवस्थाओं में डॉक्टर की सलाह पर टीबी का इलाज छह महीने से अधिक तक चलाया जा सकता है। टीबी के उपचार के दौरान कई मरीज कुछ स्वस्थ होने के बाद दवाई का सेवन बंद कर देते हैं, जिससे यह रोग और विकराल रूप ले सकता है। प्रदेश के सभी शासकीय स्वास्थ्य केंद्रों में टीबी के इलाज के लिए अच्छी गुणवत्ता की दवाईयाँ उपलब्ध है। सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों में इसकी निःशुल्क जांच, इलाज और दवाई उपलब्ध है। प्रदेश में टीबी के सभी पंजीकृत मरीजों को क्षय पोषण योजना के तहत इलाज के दौरान पोषण आहार के लिए प्रति माह 500 रूपए की राशि दी जाती है। डॉट सेंटर्स या डॉट प्रोवाइडर्स के माध्यम से टीबी से पीड़ित मरीजों को घर के पास या घर पर ही दवाई उपलब्ध कराई जा रही है। टीबी के मरीजों की शीघ्र पहचान के लिए हर स्तर पर कार्यरत प्रदेश के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित और सेन्सिटाइज (Sensitize) किया जा रहा है जिससे कि रोगियों की पहचान कर तत्काल लैब में रिफर किया जा सके। राज्य के कई जिलों में टीबी का पूर्ण उपचार प्राप्त कर ठीक हो चुके लोगों को इसके उन्मूलन के लिए प्रशिक्षण दिया गया है। ऐसे व्यक्तियों को टीबी मितान या टीबी चैंपियन के रूप में सम्मानित किया जाता है। टीबी से पूरी तरह ठीक हो चुके ऐसे लोग टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार के साथ मरीजों को भावनात्मक एवं सामाजिक सहयोग भी प्रदान कर रहे हैं। इससे मरीजों के ठीक होने की दर सुधर रही है। टीबी के प्रमुख लक्षण टीबी के प्रमुख लक्षणों में दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक खांसी होना, खांसी के साथ बलगम आना, कभी−कभी थूक से खून आना, वजन का कम होना, भूख में कमी होना तथा शाम या रात के समय बुखार आना जैसे लक्षण शामिल हैं। कैसे फैलता है टीबी टीबी के बैक्टीरिया सांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं। किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकते या थूकते समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं। इनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा करते हैं। एक मरीज 10-15 लोगों को संक्रमित कर सकता है। टीबी से बचाव टीबी से बचाव के लिए जन्म के एक वर्ष के भीतर शिशु को बीसीजी का टीका लगवाना चाहिए। टीबी की दवाई को बिना डॉक्टरी सलाह के बंद न करें। खांसते व छींकते समय मुंह को ढंक कर रखें। आसपास साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें।