विधायक और महापौर ने फिता काटकर किया श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल का शुभारंभ

विधायक और महापौर ने फिता काटकर किया श्री धन्वंतरी जेनेरिक मेडिकल का शुभारंभ
दक्षिणापथ, रायपुर। पुरानी पेंशन बहाली से प्रसन्न शिक्षक 29 को रायपुर में सरकार व सरकार के मुखिया का स्वागत अभिनंदन करने जा रहे है। किंतु पता नही क्यो अन्य सरकारी महकमो के कर्मचारी-अधिकारी संगठन सरकार का सम्मान करने में रुचि नही ले रहे हैं, जबकि पुरानी पेंशन बहाली के फायदा उन्हें भी बराबर मिलेगा। यहां तक कई शिक्षक संगठन भी कार्यक्रम से हर्षित नही है। खास कर सहायक शिक्षकों का कहना है कि वेतन विसंगति दूर किये बिना उन्हें ज्यादा लाभ नही होने वाला है। पदोन्नति व ops के फेर में वेतन विसंगति व क्रमोन्नति की उनकी महत्वपूर्ण मांग को भुला दिया गया है । सहायक शिक्षकों का कहना है कि ops के एवज में सरकार का सम्मान करने वाले नेताओं में वही चेहरे प्रमुख है जो वर्ग-3 के शिक्षकों को हमेशा धोखा देते आये हैं। जिनमे से कुछ शिक्षक नेता आगामी छत्तीसगढ़ असेम्बली चुनाव में मुख्य राजनीतिक दलों से विधायकी की टिकट पाने की फिराक में भी है। शिक्षक संगठनों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि सरकार के सम्मान के नाम पर कतिपय शिक्षक नेता श्रेय की राजनीतिक होड़ में है। जबकि ओपीएस किसी संगठन की जीत नही है, बल्कि कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर का राजनीतिक मुद्दा है। ओपीएस मसला आगामी दिनों में एक बड़ा राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लेने जा रहा था, जिसे कांग्रेस ने समझ लिया और अपना भी बना लिया। आमतौर पर सरकारी कर्मचारी व अधिकारियों का मानना है कि भाजपा ने ही पेंशन सिस्टम को खत्म किया है। भाजपा पर सरकारी कर्मचारी-अधिकारी के व्यापक हित विरोधी मानसिकता का आरोप लगता रहा है। भाजपा के कई फैसलों में यह प्रकट भी हुआ है। बहरहाल, मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार अपने कर्मचारी-अधिकारी को 31 फीसद डी ए दे रही है। केंद्र सरकार आसपास के राज्यो में शिक्षकों के वेतन छत्तीसगढ़ से कहीं ज्यादा है। लंबित डीए की मांग दो-तीन सालों से की जा रही है। किंतु भूपेस सरकार फैसला नही ले रही है। सहायक शिक्षकों के वेतन विसंगति के मसले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ऐसे में ठगे हुए शिक्षक पूछ रहे है कि 2030 के बाद मिलने वाले पेंशन के लिए अपने आज के हक को कैसे भुला दें? जबकि पेंशन का कोई निश्चित प्रारूप तय ही नही हुआ है। पता नही, किसे कितना पेंशन मिलेगा। या मिल भी सकेगा या नही, कोई भरोसा नही। क्योकि अभी तक के रिकार्ड बताते है कि सरकारी वादों पर भरोसा नही किया जा सकता। आज नहीं तो कल, पुरे देश मे लागू होगा पुरानी पेंशन पेंशन एक ऐसा ज्वलन्त मसला है, जिस पर सरकारी मंशा में विरोधाभास है। एक ओर अपने जीवन का महत्वपूर्ण 35-40 साल खपाने वाले कर्मियों को पेंशन से महरूम किया गया तो दूसरी ओर महज कुछ दिन विधायक, सांसद या मंत्री रहने वाले जनप्रतिनिधियों को मनमाने पेंशन से नवाजा गया, तब कहीं से विरोध के सुर न उठे। यह दोहरी नीति आज सरकार की कथनी व करनी के खिलाफ वृहद जनराय कायम कर रही है। पेंशन बंद होने से सरकार की जिंदगी भर सेवा करने वाले कर्मियों के बुढ़ापे की लाठी छीन ली गई। पेंशन बंद करने को पूर्व प्रधानमंत्री स्व अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ा गलत फैसला माना गया। आज अन्य राजनीतिक दल सत्ता में आने पर पुरानी पेंशन बहाली का दावा करते हैं, और इस कड़ी में छत्तीसगढ़ सहित राजस्थान ने इस अहम फैसले पर मुहर भी लगा दिया। Ops आज एक राजनीतिक आंदोलन का रूप अख्तियार कर रहा है। आज नही तो कल, पूरे देश मे इसके लागू होने की उम्मीद है।