वन होम, वन ट्री महा अभियान कल पौधरोपण का सबसे बड़ा दिन, आईये अपने घर लगाएं एक पौधा

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योगी बस्तरिया की कलम से....

झुंझुरती आंखें... सागौन बड़े-बड़े पेड़ के ऊपर हेलिकॉप्टर (चॉपर) की पंखों की फट-फटाहट… टीले के ऊपर वायरलेस की फिक्वेन्सी सेट होने की सीलोन की तेज सिटी के बीच अल्फ़ा माइक to डेल्टा विक्टर… आई रिपीट अल्फ़ा माइक to डेल्टा विक्टर… रिसीव केरी-ऑन अल्फ़ा माइक… एम्बुस से जवानों की बड़ी केजुवल्टी है, कोई जिंदा बचा नहीं लग रहा है। सब जगह कारतूस के खोखे और मांस का चिथड़ा खून के साथ सुख गए है… डेल्टा विक्टर to अल्फ़ा माइक पहाड़ी घना है, हेलिकॉप्टर (चॉपर) को नहीं उतर सकते। जमीनी मदद चाहिए जल्दी, रिसीव केरी-ऑन अल्फ़ा माइक। डेल्टा विक्टर to अल्फ़ा माइक ओवर इन आउट…!

घंटों बाद एक एम्बुलेंस की आहट सुनाई दी। उधर, दो जवान जमीन पर बेसुध है, सांसे चल रही है… टेम्प्रेरी ट्रीटमेंट के बाद सफेद झंडा लगाए घटना स्थल से निकल चुकी थी। डेल्टा विक्टर to लीमा माइक एम्बुलेंस घायलों को लेकर निकल चुकी है। रास्ता बहुत खराब है और माइंस भी बिछे हो सकते है…. रिसीव केरी-ऑन डेल्टा विक्टर। ठीक है हम उनका इंतजार कर रहे है, GPS से ट्रेस करते रहेंगे… लीमा माइक to डेल्टा विक्टर ओवर इन आउट…।

एम्बुलेंस रफ्तार से कच्ची पखडण्डी पर रफ्तार पकड़ ली। दर्द भी मीठा सा सकून दे रहा था… हमें मालूम था रास्ता कितना लंबा है। सुबह नाश्ते के बाद पैदल जंगल से शॉर्टकट लेकर तीन नदी पार कर रातभर चलकर इस घाटी तक पहंचे थे…

स्पीड से समझौता नहीं…. उन्हें तो बेस कैंप पहुंचना था। पेड़ के झींगुर किटकिटा रहे थे। घाटी के हर मीटर में अंधा मोड़ तो दूसरी ओर कई फिट गहरी घाटी। वामगढ़ की वजह से सड़क बनी नहीं थी, हर जगह गड्ढे… ड्राइवर जनता था कि ये गढ़ उनका है, हमें भी उड़ा देगा… तेज रफ्तार से घाटी से उतरती एम्बुलेंस अनियंत्रित होकर एक मोड़ के मुंहे से जा भिड़ी… टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि एम्बुलेंस का सामने का भाग बुरी तरीके से क्षतिग्रस्त हो गया। स्टार्ट करने की बहुत कोशिश की, नहीं हुआ। ड्राइवर और साथी मदद के लिए नीचे चला गया… और हम जिंदा है या मर गए है ये झांकने लौटकर आया भी नहीं…

गोधूलि बेला के वक्त जंगल में अंधेरा छा जाता है… सुनी घाटी में Rx100 की आवाज उनके करीब पहुंचने लगी… एम्बुलेंस देखकर रुका, दरवाजा खोलकर गोंडी लहजे में बोला… सुबह की फायरिंग से बचे जवान तुम लोग हो क्या? एम्बुलेंस से घसीटकर बाहर निकाला और उस जगह से 36 डिग्री पूर्व की ओर एक गुफा में जा घुसे…

चांदनी रात जंगल में रोशनी बिखर रही थी… लेकिन गुफा के गर्भ तक चांद की रोशनी नहीं पहुंच पा रही थी। रातभर अलाव जलता रहा। जब धुआं उठता तो लकड़ी फूंकने लगता। तीनों की भाषा मौन थी, लेकिन असर व्यापक था… जवनों को गोलियां लगी थी। पीठ सहित जगह-जगह निशान थे…

कॉमरेड ने जवनों को पानी पिलाई फिर इंजेक्शन लगाकर जवनों के शरीर से धंसे कारतूस निकाला। बैग से कॉटन निकालकर पट्टी किया और अपनी गोंडी लहजे से बोला बुरी तरह जख्मी हो हॉस्पिटल जाओ… मदद मंगवा लो बचोगे नहीं। बेस कैंप बहुत दूर है अभी चलते जाएंगे तो दोपहर हो जाएगी। इंजेक्शन के असर होने के बाद एक जवान काहारते बोला हम सब भूखें है, लड़के ने बैग से खाने का समान निकाल कर रख दिया…

जवानों ने पूछा तुम कौन हो…
कहां से आए इस सुनसान जंगल में… हमारी मदद क्यों कर रहे हो, नक्सली जान जएंगे तो तुम्हें अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ेगी। तुम चले जाओ बच्चे। 12 साल के बच्चे ने कहा, तुम दोनों मेरे बिना इस बीहड़ जंगल से बिना हथियार और ढाल के निकल नहीं सकते। तुम्हारा कम्पास अपने जेब में रख लो…

कुछ देर सन्नाटा रहा… 12 साल के लड़के ने क्या कहा, ये नहीं समझ पाया, लेकिन वो क्या कह रहा है जवान जान गया… जुल्म रीढ़ से चढ़कर मस्तिष्क में उतर गया था, लेकिन भाषा फिर भी सलामत थी। शांत होकर कहां, मैं इस बस्तर के जनताना सरकार का बाल संघम का एक सच्चा कॉमरेड हूं….

आजाद कोटामी कॉमरेड हूं…
सन्नाटा पसर गया जवान एक दूसरे को देखते रह गए। 12 साल का कॉमरेड, क्यों और कब बने, एक ने पूंछा…

कोटामी ने गोंडी के साथ टूटी-फूटी हिंदी और हाथ के इशारे से बताया… जब मैं 8 साल का था आस पास के 10-15 गांव वाले त्योहार के लिए जंगल मे इकठ्ठे हुए थे। मैं तेंदू की लकड़ी कांटने लिए दूसरे छोर चला गया था… सर्चिंग में आए सीआरपीएफ के एक दस्ते ने लोगों को दौड़ा के गोली मारने लगे… बाबो (पापा) को मार दिया वो भाग नहीं पाया, आयोयो (मां) की छांव लेकर गोलियों से तो बच गया। लेकिन, सरकारी तंत्र से नहीं, दूसरे दिन सब मरने वाले नक्सली हो गए…

लाश के जख्म में मक्खियां भिनभिनाती रह गई लेकिन, जवान लाशों के साथ ढोर (मारे हुए पशु) जैसा कर रहे थे। जहां जहां लोग मरे थे यही उसके शरीर को चीर फाड़ रहे थे। वही खोद कर नमक डालकर दफना दिए…

इस समय गोंडी की अनुवाद जरूत नहीं थी, सब समझ गए। फिर भी दोनों कुछ नहीं बोल नहीं पाएं…
क्योंकि ये कहानी कैम्प में जवनों ने सुन चुके थे,
हकीकत आज बच्चे से जाना…

सच में…
बेहद दर्दनाक और भयावह था…

अलाव से रह-रहकर चिंगारियां फूटने लगती…
पौ फटने लगी थी, कहानियां क्रम जारी ही रही…

सरकार की भावना और संवेदना सिर्फ भाषण में था।
पढ़ाई में अव्वल था… आसपास के सभी बालक आश्रम को बारूद से उड़ा दिया। पहाड़ के उस पार एक स्कूल है जिसे नदी पार करके 5 कोस जाना पड़ता… स्कूल से दूरियां होती है और बस्ते में किताबें दूसरी हो गई थी और जगह ले ली नक्सली साहित्यों ने…

नक्सली आते हैं अक्सर, मुझे बाल संघम में शामिल कर दिए… शाम और रात में बैठक होती है, जिसमे हमें पाठ पढ़ाया जाता कि पुलिस, सीआरपीएफ और खाकी वर्दी वाले दुश्मन है। हमें इनसे आजादी चाहिए… हमारा जल-जंगल-जमीन ले कर रहेंगे, नहीं मिलेगी तो छीन लेंगे। हमें फायरिंग कैसे करनी है, कैसे साथी को बैकअप देना है, बारूद और गोलियां फ़ायरिंग करते करते कैसे पहुंचना है और सबसे फुर्तीला-होशियार जवान पर कैसे हावी होने है… मुठभेड़ में मारे गए जवनों के लिए जश्न मनाकर नाचते हैं। नया लाल लड़का उचे पद वाले जवान को मारता तो उसकी पदवी बढ़ा दी जाती…

मैं जानता हूं, जनताना सरकार की आजादी झूठी है। मेरे जैसे कई लाचार और बेबस लड़के संघम में कॉमरेड हैं। मैं इनके पाठशाला में पूरी निष्ठा, ईमानदारी और कर्त्तव्य से पढ़ता हूं। पीठ पर बंदूक लटकाकर जनताना का वर्दी तो पहन लिया। लेकिन मैं असली कॉमरेड बनना चाहता हूँ,मार्क्स  लेलिन और माओ से-तुंग की के विचारधारा को अपनाना चाहता हूं। जो गरीबो की हक के लिए लड़े थे…

बाते करते करते तीनों की आंख लग गईं…

सुबह जब वे चलने लगे, वह कॉमरेड नदारत था।
कुछ नक्शे और सिग्नल छोड़ रखा था…

जगंल में जब 3 किमी पैदल चलने के बाद वह नजर आया… इंतजार कर रहा था दोनों का। यहां कुछ गांव वाले थे, आधा से ज्यादा रास्ता मालवाहक गाड़ी में पार कर चुके थे, नदी और पहाड़ी के कारण आगे का रास्ता बंद था…

कॉमरेड ने गांव से खाने के लिए रख लिया था… खाने के बाद नदी पार करना था.. जवान को अपनी बंदूक देकर मगरमच्छ पानी के अंदर तैरते तैरते आगे बढ़ने को कहा… नदी पार में कोई चट्टान या खोल हो तभी पानी से निकलना.. सीआरपीएफ की टुकड़ी हो तो उसे सेफ्टी का सिग्नल दे देना… कोई न दिखे तो वहीं रहना जब तक मैं जवान के साथ न आ जाऊं, जब तक निकलना नहीं…

सीआरपीएफ का जवान 12 साल के एक कॉमरेड के ऑडर फॉलो कर रहा था… थोड़ी देर के बाद घायल जवान को थक जाने के कारण अपने कंधे में लादकर टीले के पास पहुंच गया… थोड़ी देर रुक कर चट्टान चढ़ने लगे… 4 किमी चलने के बाद जंगल के झाड़ियों के बीच नक्सलियों का 30 लोगों का झुंड था…

कॉमरेड के पास एक बंदूक थी और दो जवानों के जान के हिफाजत की जिम्मेदारी…

कामरेड ने अपने पीछे बैकअप प्लान बनाया… जब फायरिंग करते भांगू तो तुम जमीन में सरकते हुए आगे बढ़ना। मौका मिलते ही मैं राइफल फैंकूंगा… मेरे इशारे का ध्यान रखना… अंधाधुंध फायरिंग करते हुए उसके राउंड एम्बुस तोड़कर घुस गया… और हथियारों के साथ जवनों के साथ मिल कर V एम्बुस को तोड़ने लगा। कई नक्सली मारे गए, तीनों भारी पड़ चुके थे लाल आतंक के लड़ाकों पर, घायल होकर भागने लगे,सबको वही ढेरकर दिया…

जवानों को बेस कैम्प तक जिंदा पहुंचाने की जिद ने कॉमरेड ने अपने ही जंगल के नक्सलियों के खिलाफ उसी के गढ़ में बागी बन गया था। अपनी बंदूक की गोली से जवाब देना शुरू कर दिया… किसी कॉमरेड को बागी होते पहली बार देखा था…

मारे गए नक्सलियों के डेरे से हथियार, खाना और चिकित्सा उपकरण से सीआरपीएफ के जख्मी जवानों का इलाज किया… 12 साल के लड़के का हौसला देख दोनों जवानों के शरीर में जोश भर गया…

खून की थैली लगवाए एक जवान ने पूछा…

तुमने दो एम्बुस को तोड़कर अंदर भी चले गए और हमें लंबी फायर रेंज वाली रायफल देकर बोला सामने वालों को नहीं बैकअप करने आएंगे उसे मारो। जिस जिस पे इशारा करते गए उसे हम मारते गए। ये दोनों एम्बुस बहुत खतरनाक था… 48 घण्टे पहले इसी एम्बुस मे फंसे थे.. और दो के अलावा 24 जवान शाहिद हुए… बताओ ये सब कैसे किया और इतना तगड़ा ट्रेनिंग कैसे  करते हो, किसने सिखाया…

मुस्कुराते हुए कहा… फॉलो मी “ब्रायलर”
नक्सली सीआरपीएफ के जवनों को “ब्रायलर” बोलते है

बोला… मैं वामगढ़ के गर्भ में पलने वाला अभिमन्यु हूं… जो बस्तर की कोख में चलकर चक्रव्यूह (सभी एम्बुस) को तोड़ना सीखा हूं… तुम महाभारत के अभिमन्यु जैसे हो जो इस चक्रव्यूह में घुस कर मारे जाते हो…

सर्चिंग से लौटते लापरवाही तुम्हारी सबसे कमजोर कड़ी होती है एम्बुस में फंसने की। दोनों के कन्धों में हाथ रखते हुए बोला… ब्रायलर जब तक मैं हूं तुम्हें बचाता रहूंगा। हंसी ठिठोली करते हुए जंगल के शॉर्ट से बेस कैंप 2 किमी बचा था..

बातों बातों में सूखा नाला पार कर लिया… एक कॉमरेड जिसकी लड़ाई… इंसानियत के लिए थी अब वो मौत के मुहाना पार कर रहा था…

कंसेन्टीना फेंसींग (कटीले तार) से घिरे कैम्प के पौन गज की दूरी पर… कैम्प के भीतर मचान में खड़े जवान ने हलचल भांप लिया। टेलिस्कोप से निहारते हुए दो जवनों को बंधक बनाए एक वर्दीधारी नक्सली मानकर पोजिशन लेकर साधी हुई उंगली से SLR रायफल का ट्रिगर दबा दिया… एक मैगजीन के कारतूस के पीतल के खाली खोके जवान के पैर पर गिरता रहा। आधा गज दूर से दोनों जख्मी जवान स्टॉप फ़ायरिंगि… रंगरूट ड्राप यूआर गन नो… प्लीज फ़ायरिंग चिल्लाते रह गए…

कॉमरेड को मार गिरा दिया… वो आजाद हो चुका था

कॉमरेड को 16 गोली लगी थी… 3 गोली उसके सिर को भेदती पार हुई थीं.. दोनों जवान कॉमरेड की बॉडी से लिपटकर उसे अपनी जिंदगी बचाने और दुश्मन होकर मानवीय भावना के लिए उसके खून से सने कपड़े और माटी में अपने आंसू से धो रहे थे…

फ़ायरिंग से कैम्प में ऑफर तफरी मच गई… सारे जवान घटना जगह भागते पहुंच गए… इस्ट्रेचर लाया जिसमें कॉमरेड बॉडी को लेटाकर कैम्प के अंदर लाए और कॉमरेड को बचाने वाले जवान के लिवर के पास गोली लगने के कारण आपातकाल में ले जाया गया… इलाज के दौरान वो जवान भी दम तोड़ देता है.. तो दूसरा जवान उपचार के कुछ महीने बाद नौकरी छोड़ देता है…

ऊफ…!
मदद की कहानी भी कभी इतनी भयावह होगी।
जवनों ने भी सोचा न था… जो कॉमरेड को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी…

जवान सीआरपीएफ कोबरा बटालियन से वीआरएस लेकर अपना गांव चला गया… कुछ दिन के बाद एक कहानी लिखकर उस आजाद कॉमरेड को लाल सलामी दे कर अपने जीवन का हीरो बना देता है…

और उस कहानी को शीर्षक देकर सल्यूट करता है…
“Behind The Dark Hills”
कहानी एक आजाद “कॉमरेड” की…

(लेखक दैनिक समाचार पत्र में सीनियर ग्राफिक डिजाइनर हैं)