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दक्षिणापथ. नई दिल्ली
दिग्गज टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) ने भारतीय मूल के सत्या नडेला (Satya Nadella) को चेयरमैन नियुक्त किया है। नॉन प्रॉफिट संस्था Indiaspora के मुताबिक दुनियाभर में 1 अरब डॉलर से अधिक रेवेन्यू वाली ऐसी करीब 60 विदेशी कंपनियां हैं जिनका नेतृत्व कोई भारतवंशी कर रहा है। इनमें से कुछ चेयरमैन और सीईओ दोनों पदों को संभाल रहे हैं। इनमें नया नाम अब सत्या नडेला का भी जुड़ गया है।

आईबीएम (IBM) के दिग्गज अरविंद कृष्णा को पिछले साल कंपनी का सीईओ बनाया गया था और दिसंबर में उन्हें चेयरमैन की अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंप दी गई। फेयरफैक्स फाइनेंशियल सर्विसेज (Fairfax Financial Services) के प्रेम वत्स भी दोनों पद संभाल रहे हैं। इसी तरह एबोड (Abode) के शांतनु नारायण और पालो ऑल्टो नेटवर्क्स (Palo Alto Networks) भी चेयरमैन और सीईओ हैं। मास्टरकार्ड (Mastercard) के अजय बंगा भी एक्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं।

क्या दोनों पदों पर एक व्यक्ति रहना चाहिए
इस मामले में जानकारों की राय बंटी हुई है कि एक ही व्यक्ति को चेयरमैन और सीईओ की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए या नहीं। हार्वर्ड बिजनस स्कूल में एग्जीक्यूटिव फेलो विजय गोविंदराजन का कहना है कि अमूमन पब्लिक कॉरपोरेशंस में बोर्ड चेयरमैन का पद सीईओ से अलग होता है ताकि बोर्ड शेयरहोल्डर्स की तरफ से कॉरपोरेट गवर्नेंस सुनिश्चत कर सके। लेकिन उनका कहना है कि माइक्रोसॉफ्ट अब भी हाई ग्रोथ कंपनी है और कंपनी के सीईओ के कंपनसेशन में अधिकांश स्टॉक ऑप्शंस शामिल हैं। इनकी वैल्यू माइक्रोसॉफ्ट की फ्यूचर ग्रोथ पर निर्भर करती है। इस तरह सीईओ और शेयरहोल्डर्स के हित समान हैं। उन्होंने कहा कि सत्या नडेला बेहतर लीडर हैं और उन्हें चेयरमैन बनाए जाने से माइक्रोसॉफ्ट के शेयरहोल्डर्स का भी भला होगा।

दूसरी ओर सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी में Lee Kong Chian professor of marketing निर्मल्य कुमार का कहना है कि चेयरमैन और सीईओ के रोल को मिलाना अच्छा आइडिया नहीं है। इसमें समस्या यह है कि चेयरमैन खुद अपने कंपनसेशन के लिए वोट दे रहा है मैनेजमेंट पर नजर रखने की बोर्ड की भूमिका कमजोर हो रही है। उन्होंने कहा कि एक पावरफुल चेयरमैन सीईओ पर कंट्रोल रखता है और उनके बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा से बेहतर फेसले होते हैं।