पीएम मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया फेसबुक में अभद्र गाली गलौच करने वाले के खिलाफ भाजयुमो ने की थाने में शिकायत….

पीएम मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया फेसबुक में अभद्र गाली गलौच करने वाले के खिलाफ भाजयुमो ने की थाने में शिकायत….

दक्षिणापथ. कभी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद तक तो पहुंचे, लेकिन 72 दिन ही यह जिम्मेदारी निभा पाए। मंगलवार सुबह से यह चर्चा थी कि सिद्धू की खेमेबंदी की वजह से मुख्यमंत्री पद छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह आज दिल्ली में अमित शाह से मुलाकात कर सकते हैं। कुछ ही घंटे बाद सिद्धू ने अचानक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने का एलान कर दिया। पंजाब की सियासत में मची इस उथलपुथल के मायने क्या हैं और आगे क्या होगा, जानिए…

सिद्धू के इस्तीफे के मायने क्या हैं?
एक तरफ अमरिंदर सिंह के भाजपा में जाने की चर्चा है, दूसरी तरफ नवजोत सिंह सिद्धू ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया। सारे बिंदुओं को आपस में जोड़ें तो कांग्रेस के लिए कुलमिलाकर स्थिति ठीक नहीं है। कांग्रेस में जो उथलपुथल मची है, वह ठीक होती नहीं दिख रही।

अंदर की बात ये है कि सिद्धू को संतुष्ट कर पाना किसी के लिए आसान नहीं है। वे सीएम बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह मौका नहीं दिया गया। अंदरखाने नाराजगी थी कि बड़ी नियुक्तियों में सिद्धू को भरोसे में नहीं लिया जा रहा था। सिद्धू की फितरत में यह शामिल हो गया है कि वे अपनी राजनीतिक पारी में अचानक यू-टर्न ले लेते हैं। अब वे आम आदमी पार्टी में तो नहीं जाएंगे। इस वक्त दल बदलने का उनका कोई इरादा नहीं दिखता।

आखिर कहां चूक गए सिद्धू?
उनकी तीव्र इच्छा मुख्यमंत्री बनने की थी। उन्होंने जबर्दस्त लॉबिंग की थी। जातिगत समीकरण के मद्देनजर कांग्रेस ने उन्हें सीएम नहीं बनाया। पंजाब में सिद्धू का बड़ा जनाधार भी नहीं है। लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। जो परिपक्वता उनमें बतौर प्रदेश अध्यक्ष दिखनी चाहिए थी, वह नहीं दिखी। कांग्रेस ने यह दांव ही गलत चला था।

कांग्रेस में अंदरखाने क्या चर्चा है?
पंजाब कांग्रेस के बाकी नेताओं ने पूरा जीवन पार्टी के लिए खपा दिया। उन्हें भी यह बात अंदर से नहीं पच रही थी कि एक आदमी अचानक से कांग्रेस में आता है और प्रदेश अध्यक्ष बनकर अपनी मर्जी से लोगों को पार्टी में ले आता है। तीन महीने पहले तक कांग्रेस की स्थिति मजबूत थी। यह माना जा रहा था कि पंजाब में कांग्रेस वर्सेस ऑल रहेगा, लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं।

पंजाब की राजनीति में आगे क्या होगा?
आम आदमी पार्टी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। फिलहाल की स्थिति में तो पूरा फायदा उन्हीं को जाता दिख रहा है। सिद्धू खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। अमरिंदर सिंह हमलावर हैं। अगर वे भाजपा में गए तो पूरे समीकरण बदल जाएंगे।

कांग्रेस के पास अब क्या विकल्प बचते हैं?
कांग्रेस के लिए दुविधा में दोनों गए, न माया मिली, न राम। अभी दस जनपथ के लिए दुविधा की स्थिति है। अमरिंदर सिंह के नाराजगी मोल लेने की कीमत पर सिद्धू को आगे बढ़ाया गया। कांग्रेस ने सिद्धू के लिए बड़ी कीमत चुकाई है। निश्चित तौर पर कांग्रेस आलाकमान सिद्धू से नाराज होगा। कांग्रेस का फायदा इसी में है कि वह इस मामले को जल्द शांत करे। जो भी पार्टी अब सिद्धू पर दांव लगाना चाहेगी, वह कई बार सोचेगी।

अमरिंदर किस तरह बाजी पलट सकते हैं?
अमरिंदर किसी पार्टी में जाते हैं तो कांग्रेस को नुकसान झेलना होगा। महाराष्ट्र में शरद पवार ने कांग्रेस से अलग होकर राकांपा बनाई। बंगाल में ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस छोड़कर तृणमूल बनाई। दोनों ही राज्यों में इससे कांग्रेस को नुकसान हुआ। देखना होगा कि अगर अमरिंदर सिंह अगर भाजपा में जाते हैं तो इससे भाजपा की संभावनाओं, कांग्रेस की जमीनी पकड़ और अकाली-बसपा के गठबंधन पर कितना असर पड़ता है।

अमरिंदर का कद क्यों बड़ा है?
दरअसल, कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस के पर्याय थे। जैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मध्यप्रदेश में हुआ, यह वैसा ही मामला है। जब सिंधिया नजरअंदाज हुए तो उन्होंने पार्टी छोड़ दी। अमरिंदर सिंह राजनीति के चतुर खिलाड़ी हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने यह तक कह दिया था कि राहुल गांधी जैसे बड़े नेताओं को पंजाब आने की जरूरत नहीं, वे अकेले ही कांग्रेस को चुनाव जिता ले जाएंगे। अमरिंदर जानते थे कि सिद्धू की एंट्री कांग्रेस को कमजोर करेगी। उन्होंने सीएम पद से इस्तीफे के दिन ही राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाकर सिद्धू को और कमजोर कर दिया।

अमरिंदर के लिए भाजपा में क्या संभावनाएं हैं?
अमरिंदर एक बार मोदी की तारीफ कर चुके हैं। भाजपा से उनकी इक्वेशन ठीक रही है। इससे पंजाब की राजनीति में उलटफेर हो सकता है। अमरिंदर बड़ा फैसला लेते हैं तो पूरा कैडर उनके साथ जाएगा, लेकिन भाजपा को उन्हें फ्री हैंड देना होगा। भाजपा का अपना तरीका है। सिंधिया को वे अपने तरीके से लाए। उन्हें केंद्रीय मंत्री जरूर बनाया गया, लेकिन उनका कद वैसा नहीं है, जैसा कांग्रेस में हुआ करता था। भाजपा में अंतिम निर्णय मोदी-शाह के हाथ में होते हैं।

दरअसल, पंजाब में भाजपा की बड़ी जमीन नहीं है। अमरिंदर जैसा तुरुप का इक्का उन्हें मिलेगा तो पंजाब के चुनाव में बाजी पलट भी सकती है। पंजाब में भाजपा के लिए हालात मध्यप्रदेश जैसे नहीं हैं। मध्यप्रदेश में भाजपा के पास कई बड़े नेता हैं। पंजाब में भाजपा के पास बड़ा नेता नहीं है।