कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 1974 पहुंची, इनमें से 1750 एक्टिव , 55 लोगों की मृत्यु

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-नवकार भवन में चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला-20 वां दिवस
दक्षिणापथ, दुर्ग।
ऋषभ नगर स्थित नवकार भवन में शांत क्रांति संघ के तत्वाधान में आयोजित चातुर्मास प्रवचन श्रृंखला के तहत आज 20वें दिवस के प्रवचन में महातपस्विनी श्री प्रभावती जी मसा ने फरमाया कि वर्तमान में लाखों की संख्या में लखपति हैं, तिजोरियां भरी है, धन-संपत्ति की कोई कमी नही है परंतु लोगों में दान देने की तत्परता नहीं है। दान देने के भाव का अभाव दिखाई पड़ता है। जबकि पुण्य अर्जित करने के लिए दान से बड़ा कोई साधन नहीं है।
दान की महिमा को असीम करार देते हुए साध्वी मसा ने कहा कि ब्याज में धन का निवेश करने से दो गुना, व्यापार में चार गुना, तथा कृषि में निवेश करने से सौ गुना लाभ होता है, ऐसी मान्यता है , जबकि धन को यदि दान में निवेश किया जाए तो उसका अनंतगुना फल मिलता है। दान में किये निवेश का लाभ इस लोक में तो मिलता ही है, उस लोक में भी मोक्ष का द्वार खोल देता है। दान देने से दानदाता कभी कभी इंद्र के पद को भी प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है।
आप ने आगे फरमाया कि व्यक्ति गृहस्थ जीवन में रहते हुए दान देकर पुण्यायी हासिल कर सकता है। गृहस्थों के लिए दान ही पुण्य अर्जन के लिए सर्व सुलभ साधन है। लेकिन वर्तमान दौर में इस सुलभ साधन का सदुपयोग कम लोग ही कर पा रहे हैं। साध्वी मसा ने कहा कि आज धन अर्जन करने की दिशा में हर कोई सजग है, पुरुषार्थ कर रहा है, बदले में कमाई भी बढ़ रही है लेकिन उस संचित धन का सदुपयोग कम ही हो रहा है, यह अफसोसजनक है। संचित धन का उपयोग करने का अवसर आता है तो पीछे हट जाते हैं, बल्कि एक दुखद पहलू यह भी है कि धन का दुरुपयोग होने लगा है। इससे जीवन ना केवल कलंकित हो रहा है बल्कि पुण्यों का क्षरण भी हो रहा है। विवेकशील गृहस्थों को इस स्थिति से बचना चाहिए। सतर्क रहें धन का दुरुपयोग ना होने पाए।
अपनी संपत्ति दान करें- महाविदुषि प्रभावती जी मसा ने कहा कि दान देने के मामले में यह भी सावधानी बरतें कि अपने अधिकार के धन अथवा वस्तु का दान करें तभी पुण्य के भागी बनेंगें। दूसरों के अधिकार का धन दान करने से कोई लाभ नही मिलेगा। आप ने फरमाया कि दान श्रम, समय, संपत्ति व ज्ञान का भी किया जा सकता है। जिनके पास संपत्ति ना हो वे श्रम व समय का दान सार्वजनिक कार्यों में दे सकते हैं। ज्ञान का दान भी महादान की श्रेणी में आता है। किसी जीव को प्राणदान अथवा अभयदान देना भी काफी पुण्यफलदायी होता है। कोई भी जीव मरना नहीं चाहेगा इसलिए उस जीव को अभयदान देकर निर्भय कर दें तो इससे बड़ा कोई दान नहीं हो सकता। इस तरह दान वह साधन है जो मनुष्य को मोक्ष के द्वार तक ले जाता है।
संत आगे देखते हैं, गृहस्थ पीछे.- प्रारंभिक प्रवचन में साध्वी श्री अभिलाषा श्रीजी ने फरमाया कि सही देखो, सुंदर देखो, सही जानो, और सही करो तो जीवन साधना के मार्ग पर चल पड़ेगा और साधना सुगम हो जाएगी। ग़लत देखने से चिंतन भी गलत होगा तो कर्म भी गलत हो जाएगा फिर कर्मफल भी गलत ही मिलेगा। साधु-संतों के बताए मार्ग पर चलने का प्रयास होना चाहिए क्योंकि संत आगे की देखते हैं और सांसारिक गृहस्थ हमेशा पीछे देखते हैं, इसलिए साधना में भी पीछे रह जाते हैं। पीछे देखने से सांसारिक उन्नत्ति हो सकती है परंतु साधना आगे नहीं बढ़ पाएगी। आप ने फरमाया कि जिनवाणी सुनें और उसी के अनुरूप आचरण करते हुए पुरुषार्थ करें।