खेसारी और काजल राघवानी के गाने ने तोड़ा रिकॉर्ड

खेसारी और काजल राघवानी के गाने ने तोड़ा रिकॉर्ड

दक्षिणापथ, भिलाई।केन्द्रीय राजमार्ग व परिवहन मंत्रालय द्वारा स्टील बार के इस्तेमाल को लेकर लागू किये गये नियम को लेकर लघु उद्योग भारती के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सत्यनारायण अग्रवाल , प्रदेश अध्यक्ष पुरोष्तम पटेल, प्रदेश उपाध्यक्ष राजेश अग्रवाल, प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य उमेश चितलांग्या, कार्यलय प्रभारी दुर्गा प्रसाद, लघु उद्योग भारती दुर्ग इकाई के अध्यक्ष संजय चौबे ने एमएसएम्ई के केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गड़करी एवं मुख्य सचिव श्री ए. के. शर्मा को पत्र भेजकर कहा कि यह फैसला सिर्फ बड़े-बड़े उद्योगों के पक्ष में है। जबकि दोनों उत्पाद एक ही है। सिर्फ बड़ी कंपनियां ही बिलेट से बार बनाती है, जबकि एमएसएमई स्पंज आयरन से बार बनाती है। सरकार कह रही है कि सिर्फ बिलेट से बने पार का इस्तेमाल होगा। इससे इस्पात से जुड़ी MSME पर मार पड़ेगी। उन्किहोंने कहा कि हम समझते हैं कि जिस व्यक्ति ने ऐसा निर्णय लिया है, उसने कुछ ऐसे व्यक्तियों से बात की है, जिन्होंने स्टील बनाने का केवल एक पक्षीय विचार दिया है।

संजय चौबे ने इसे विस्तार से समझाते हुए बताया कि लौह अयस्क के उपयोग से मूल रूप से स्टील बनाने का काम दो मार्गों से होता है:
1) ब्लास्ट फर्नेस रूट
इस मार्ग में लौह अयस्क को ब्लास्ट फर्नेस में कोक के साथ गर्म किया जाता है और तैयार धातु को स्टील के पिघलने और रोलिंग मिल के माध्यम से बनाया जाता है।

2) प्रत्यक्ष रूप से लोहे का मार्ग (स्पंज आयरन)
इस लौह अयस्क को किल्न में कोयले से गर्म किया जाता है और स्पंज आयरन बनाया जाता है जो बाद में स्टील के पिघलने वाली भट्टी और फिर रोलिंग मिल में जाता है।

दोनों मार्गों में बुनियादी कच्चा माल एक समान है और तैयार उत्पाद बीआईएस मानक के सभी गुणों के मिलान के समान है।

लघु उद्योग भारती के संजय चौबे ने कहा कि अब एक तरफ सरकार मेड इन इंडिया और एमएसएमई को बढ़ावा दे रही है, और दूसरी तरफ एक निर्णय ले रही है जो एमएसएमई के खिलाफ है।
छोटे उद्योग कुल इस्पात उत्पादन और रोजगार में 70% का योगदान करते हैं, इस तरह की कार्रवाई से इन संयंत्रों और भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।