डिप्रेशन ने अंदर से तोड दिया था मैक्सवेल

डिप्रेशन ने अंदर से तोड दिया था मैक्सवेल

-लोहे के तार से चेन लिंक फेंसिंग कर रहीं तैयार
-आजीविका के परंपरागत साधनों के बजाय बाजार की मांग के अनुसार कर रहीं नए प्रयोग
-पिछले 5 महीनों में की ढाई लाख रुपए की बिक्री
-बिहान से मिला प्रशिक्षण और बैंक लिंकेज से 2 लाख का लोन लेकर जुलाई 2020 से शुरू किया काम
- सिर्फ 5 महीने में ही लोन की आधी राशि कर चुकी हैं अदा
-गौठान, स्कूल बाड़ी में बाउंड्री वॉल के लिए कर रही हैं सप्लाई

दक्षिणापथ, दुर्ग। मजबूत इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं है, ये साबित किया है पाटन ब्लॉक के महकाखुर्द की महिलाओं ने। वर्ष 2013 में सेलूद के पास महकाखुर्द गांव की कुछ महिलाओं ने गरिमा स्व-सहायता समूह का गठन किया। शुरुआत में थोड़े-थोड़े रुपए जमा करने का काम किया जाता था, ताकि जरूरत पड़ने पर समूह की किसी महिला को लोन के रूप में रुपए प्रदान की जा सके, इससे महिलाओं में बजत की आदत विकसित हुई। लेकिन समूह की गतिविधि इतने में ही सीमित होकर रह गई थी। गांव के खेतों में रोजी मजदूरी कर थोड़े बहुत रुपए कमा लेती थी। वर्ष 2019 तक यही गतिविधियां जारी रही एक दिन समूह की महिलाओं को बिहान की योजना का पता चला जिसके तहत महिलाओं को अलग-अलग तरह के काम का प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वह आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें। समूह की जनपद पंचायत से टीम आई और उनको बिहान योजना के बारे में बताया। बाजार की मांग के अनुसार इन महिलाओं ने सोचा कि क्यों ना चेन लिंक फेंसिंग तैयार कर बिक्री की जाए। राज्य शासन की महत्वाकांक्षी परियोजना नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी के तहत स्थापित किए गए, गौठानों में भी बाउंड्री वाल की जरूरत पड़ती है। इसके अलावा खेत- खलिहान बाड़ी इत्यादि में भी फेंसिंग के रूप में इनका उपयोग हो सकता है।
जनपद पंचायत के माध्यम से मिला प्रशिक्षण और बैंक से उपलब्ध कराया गया 2 लाख रुपए के लोन- समूह की अध्यक्ष द्रौपदी देवांगन ने बताया कि जब उन्होंने ये काम सीखने की इच्छा जताई तो जनपद पंचायत पाटन के द्वारा इच्छानुसार प्रशिक्षण दिलवाया गया। गरिमा स्व-सहायता समूह को चेन लिंक फेंसिंग बनाने का प्रशिक्षण दिया गया, फिर इसके बाद बैंक लिंकेज के माध्यम से इस समूह को सिर्फ 1 प्रतिशत ब्याज पर 2 लाख रुपए का ऋण उपलब्ध कराया गया। सबसे पहले इन्होंने 61 हजार रुपए की मशीन खरीदी, शुरुआत में 50 हजार रुपए का कच्चा माल यानि कि तार खरीदकर इन महिलाओं ने काम शुरू किया। महिलाओं की मेहनत रंग लाई और एडीओ और पीआरपी की मदद से आर्डर भी मिलने लगे। इसके बाद 1 लाख रुपए का कच्चा माल और मंगवाया। मर्रा के कृषि महाविद्यालय में इन महिलाओं को 2 लाख रुपए का आर्डर मिला। अपने गांव के अलावा आसपास के बाड़ी, गौठान इत्यादि से भी आर्डर लेकर सप्लाई कर रही हैं। समूह की सचिव जागृति देवांगन बताती हैं कि ये महिलाएं किसानों, बाड़ी मालिकों से भी संपर्क कर रही हैं ताकि उनका काम और बढ़े।
अपनी कड़ी मेहनत से लिए गए ऋण का एक लाख रुपए लौटा भी चुकी हैं महिलाएं- समूह की कोषाध्यक्ष नूतन यादव बताती हैं कि गरिमा स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने दिन-रात मेहनत कर आधे ऋण की अदायगी भी कर दी है। समूह ने अब तक करीब ढाई लाख रुपए का कच्चा माल खरीदा है। बाजार के रुख के अनुसार लोहे के तार की कीमत होती है 45 से 50 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से तार खरीदते हैं। जाली बनने के बाद 60 से 65 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिक्री हो जाती है। उन्होंने बताया कि इस काम मे लगभग 10 से 15 प्रतिशत का मार्जिन है। प्रतिमाह 500 से 700 रुपए बिजली बिल का खर्च और कमरे का 1000 रुपए किराया काट कर भी ठीक-ठाक आय हो जा रही है। चेन लिंक फेंसिंग बनाकर महिलाओं को हर महीने 4 से 5 हजार रुपए की अतिरिक्त आय अर्जित कर रही है। इसके अलावा ये महिलाएं खेती-बाड़ी और गौठान में वर्मी कम्पोस्ट खाद भी बना रही हैं।