यस बैंक: फाउंडर राणा कपूर गिरफ्तार

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नवकार भवन चातुर्मास प्रवचन 22 वां दिवस
दक्षिणापथ,दुर्ग
। धन की सफलता दान में, शक्ति की सफलता सेवा में और ज्ञान की सफलता विवेक में होता है। उपरोक्त तीनों तत्व जीवन की सफलता में सहायक होते हैं। यह बातें नवकार भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के 22वें दिवस महातपस्विनी साध्वी श्री प्रभावती श्रीजी ने कही।
उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए महाविदुषि साध्वी मसा ने फरमाया कि समाज में तीन तरह के लोग होते हैं- पहला, उत्तम, दूसरे मध्यम और तीसरे अधम। दान की महिमा विषय पर व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए साध्वी मसा ने कहा कि उत्तम श्रेणी के व्यक्ति सदा दान देने के लिए तत्पर रहते हैं। ऐसे लोग स्वेच्छा व स्वप्रेरणा से संघ समाज व अन्य किसी भी प्रयोजन में बढ़-चढ़ कर दान देते रहते हैं और दान देने के बाद कहीं किसी से जिक्र भी नहीं करते। दूसरी श्रेणी मध्यम लोगों की है जो मांगने पर दान अवश्य देते हैं। किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते। साथ ही दान देने की बात लोगों को बताते भी रहते हैं अर्थात थोड़ा अपना विज्ञापन भी कर लेते हैं। तीसरे अधम श्रेणी के व्यक्ति होते हैं जो साधन संपन्न व धनपति होते हुए भी मांगे जाने पर भी कुछ नहीं देते। देने की बात ये सोचते भी नहीं।
दान की प्रकृति क्या होनी चाहिए, इस पर प्रभावती जी मसा ने कहा कि उत्तम दान वही है जो देने के बाद किसी को पता भी ना चले। ऐसे दान का स्वभाव दूध के जैसा होता है जो ग्रहण करने पर सुस्वाद लगता है और शरीर व मन को पौष्टिकता प्रदान करता है। देने के पश्चात आनंद की अनुभूति होती है। दूसरा भाव होता पानी की तरह- प्यासे को पीने के लिए स्वच्छ, शीतल जल मिल जाये तो वह स्वस्थ महसूस करता है, तृप्ति का भाव उसके मन में आता है। ऐसा दान वह होता है जिसमें दान देने के बाद बदले में कोई चाहत ना हो। तीसरे प्रकार के दान की प्रकृति ज़हर जैसी होती है। इसके तहत व्यक्ति दान देने के पश्चात नाम, पद, यश अथवा कुछ अन्य वस्तु हासिल करने का भाव रखता है। ऐसा दान, दान नहीं अपितु मोल-भाव होता है। व्यक्ति पद, मान प्रतिष्ठा प्राप्त करने की नीयत से ही दान देता है। इससे व्यक्ति पुण्य तो नहीं कमाता बल्कि पाप रूपी ज़हर अपने खाते में संचित कर लेता है। इस ज़हर का दुष्प्रभाव इस जन्म से लेकर भावी जन्म तक अपना दुष्प्रभाव नहीं छोड़ता।
।। अधिकार याद रहा-कर्तव्य भूल गए।।
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर साध्वी मसा ने प्रवचन के अंदर देशवासियों व समाज के सभी वर्गों से आह्वान किया कि वे देश के प्रति अपने कर्तव्य व ज़िम्मेदारी को ना भूलें। देश व समाज के लिए भी कुछ पुरुषार्थ करें। धर्म व कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए आपने फरमाया कि मनुष्य के दस कर्तव्य होते हैं। इसमें ग्राम धर्म, नगर धर्म, राष्ट्र धर्म, ज्ञान व चरित्र धर्म का स्थान प्रमुख हैं। उपरोक्त धर्मों के तहत मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन जरूर करना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में नेताओं के क्षुद्र स्वभाव पर क्षोम व्यक्त करते हुए साध्वी मसा ने कहा कि नेतागण स्वार्थ पूर्ति में लिप्त होकर राष्ट्र धर्म को भूलते जा रहे हैं। इससे देश का भला नहीं हो रहा। नेता स्वयं का भला जरूर कर रहे हैं।
आप ने कहा कि भारत वर्ष ऋषि व कृषि प्रधान देश रहा है। यहां की धर्म व संस्कृति का विश्व में ऊंचा स्थान रहा है लेकिन स्वार्थ व पदलोलुपता के चलते राष्ट्र धर्म को हाशिये पर रख कर राजनेता बस कुर्सी हथियाने में आपस में लड़ भिड़ रहे हैं। उनका यह चारित्रिक पतन देश हित में उचित नहीं होता। उन्हें व समाज के सभी लोगों को सुधरना चाहिए ताकि देश व समाज की उन्नति हो।