लॉकडाउन के दौरान मदिरा दुकानों को प्रारंभ करने की कार्यवाही के लिए समिति गठित किये जाने संबंधी आदेश पूरी तरह गलत और फेक

लॉकडाउन के दौरान मदिरा दुकानों को प्रारंभ करने की कार्यवाही के लिए समिति गठित किये जाने संबंधी आदेश पूरी तरह गलत और फेक
दक्षिणापथ.पटना। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दल के रूप में चुनाव मैदान में उतरेगी। 'हम' के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने बुधवार को बताया, '3 सितंबर को हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा एनडीए का हिस्सा बनेगी। इसकी घोषणा जीतन राम मांझी खुद करेंगें।' 'हम' इससे पहले भी एनडीए के साथ थी, लेकिन बाद में आरजेडी नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गई थी। बिहार की सियासत में खुद को दलित नेता के रूप में पेश करने वाले जीतन राम मांझी ने 2018 में एनडीए को छोड़कर महागठबंधन का दामन थाम लिया था और अब महागठबंधन से अलग हो चुके हैं। बहरहाल, दानिश रिजवान ने कहा कि विकास के लिए हम एनडीए का हिस्सा बनने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सीट हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है। हम विकास के मुद्दे पर एनडीए के साथ जा रहे हैं। उन्होंने 'हम' के किसी भी पार्टी में विलय के प्रश्नों को भी पूरी तरह से नकार दिया। इससे पहले, मांझी ने 27 अगस्त को मुख्यमंत्री आवास पहुंचकर नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। दोनों नेताओं के बीच लंबी बातचीत हुई। नीतीश से मुलाकात के बाद मांझी ने अपने पत्ते नहीं खोले थे, लेकिन इतना तय माना जा रहा था कि 'हम' अब एनडीए में शामिल होगी। हालांकि मांझी की नजदीकियां पप्पू यादव के जन अधिकार पार्टी (JAP) और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) से भी बढ़ी। इसके बाद 2 सितंबर को कथित तीसरे मोर्चें को लेकर एक घोषणा की जानी थी, लेकिन 'हम' ने मंगलवार को इस बैठक को रद्द कर दिया। इस बीच, मांझी ने बुधवार को अपने पत्ते खोलते हुए 'हम' को एनडीए के जरिए ही बेड़ा पार कराने का फैसला ले लिया। इससे पहले मांझी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू में थे। नीतीश ने 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी से अलग होकर लड़ा जिसमें जेडी(यू) की जबर्दस्त हार हुई। इस पर नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया दिया था। हालांकि, बाद में दोनों के बीच रिश्ते में तल्खी की वजह से उन्हें पद से हटा दिया गया। इसके बाद मांझी ने अलग पार्टी बना ली। उल्लेखनीय है कि आरजेडी, कांग्रेस, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और 'हम' के गठबंधन में मांझी लगातार समन्वय समिति बनाने की मांग करते रहे थे। मांझी ने चेतावनी दी थी अगर समिति बनाने को लेकर जल्द कोई फैसला नहीं लिया गया तो वे महागठंधन छोड़कर अलग रास्ता चुन सकते हैं। इसके बाद मांझी ने 2018 में महागठबंधन छोड़ने की घोषणा कर दी।

मांझी के वोटबैंक

बिहार में दलित और महादलित के करीब 16 फीसदी वोटर हैं। इसमें से करीब 5 फीसदी रामविलास पासवान की पार्टी के साथ होने का दावा किया जाता है। वहीं जीतन राम मांझी के पास करीब 5.5 फीसदी मुसहर जाति के कोर वोटर हैं। जानकार मानते हैं कि पिछले दो चुनावों को देखकर कहा जा सकता है कि करीब दो से ढाई फीसदी वोट मांझी के नाम पर इधर से उधर होते हैं।

मांझी की 15 सीटों की है डिमांड

2020 बिहार विधानसभा चुनाव में मांझी 15 सीटों की डिमांड कर रहे हैं। हालांकि सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि उनकी पार्टी को 9-12 सीटें दी जा सकती हैं। मांझी 2015 में विधानसभा की 35 सीटों पर किस्मत आजमाना चाहते थे, लेकिन एनडीए में उन्हें 21 सीटें मिली थीं। 21 सीटें मिलने से नाराज मांझी ने उस वक्त कहा था कि यदि उन्हें 35 सीटों पर किस्मत आजमाने का मौका मिलता तो पार्टी के प्रदर्शन का फायदा एनडीए को होता। हालांकि चुनाव परिणाम आने के बाद मांझी के दावे खोखले साबित हुए थे। मांझी अपनी पार्टी से जीतने वाले एकमात्र प्रत्याशी थे। खुद मांझी ने मखदुमपुर और इमामगंज से किस्मत आजमाई और मखदुमपुर सीट से हार गए थे। इमामगंज से उन्होंने उदय नारायण चौधरी को शिकस्त दी थी थी। मांझी 2015 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेडीयू से अलग हुए थे।