नगर पालिक निगम भिलाई के वार्डों का हुआ आरक्षण

नगर पालिक निगम भिलाई के वार्डों का हुआ आरक्षण

दक्षिणापथ । क्या देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब केजरीवाल सरकार से खौफ खाने लगी है नहीं तो वह दिल्ली राज्य की सत्ता हथियाने पिछले दरवाजे का इस्तेमाल क्यों कर रही है, ऐसा कानून वह क्यों बनाना चाहती है जिससे केजरीवाल सरकार के हाथ पैर बंध जाये और एलजी वही करें जो मोदी सत्ता चाहे!

यह सवाल भाजपाईयों को पसंद नहीं आने वाला है और वे इस बात को सिरे से नकार सकते है कि नरेन्द्र मोदी किसी से नहीं डरते और न ही भाजपा लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार को कुचलना ही चाहती है बल्कि वे इसके लिए देश की राजधानी की व्यवस्था को लेकर कई तरह का तर्क-कुतर्क दे सकते हैं लेकिन सच तो यही है कि केजरीवाल सरकार ने जिस तरह से सत्ता चलाते हुए गर्वमेंस दी है और राजनीति की है उससे भाजपा के राष्ट्रवाद और हिन्दूतत्व के मोनोपल्ली की चूलें हिल गई है।

ऐसे में जब नगर निगम के उपचुनाव में भी भाजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी तब सत्ता हथियाने के लिए यह बिल लाया गया है कहा जाये तो इसका मतलब आसानी से समझा जा सकता है।

दरअसल केजरीवाल ने जिस तरह से आम जनता के हित में मोहल्ला क्लीनिक से लेकर स्कूल की व्यवस्था की। तय सीमा और तय लागत से कम में ओवर ब्रिज व विकास के कार्य किये वह देश के दूसरे राज्यों के लिए मॉडल बनने लगा है। जबकि इसके उलट मोदी सत्ता आर्थिक नीति, विदेश नीति से लेकर अन्य नीति में फेलवर दिखने लगा है।

सवाल सत्ता अच्छी तरह से चलाना भर होता तो शायद मोदी सत्ता केजरीवाल की तरफ से लापरवाह हो सकती थी लेकिन केजरीवाल ने राजनीति के चतुर खिलाड़ी के रुप में स्वयं को पेश करते हुए कश्मीर में धारा 370 हटाने पर जिस तरह से खामोशी बरती और एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर दूरी बनाई जो भाजपा के लिए बेचैन करने वाला था। इतना ही नहीं अभी पिछले महिने केजरीवाल ने जिस तरह से दिल्ली की बजट को राष्ट्रवादी बजट और रामलला के दर्शन के लिए बजट में प्रावधान किया वह सीधे सीधे भाजपा के राष्ट्रवाद और हिन्दूत्व के मोनोपल्ली पर हमला था।

और शायद यही वजह है कि मोदी सत्ता नहीं चाहती कि केजरीवाल ताकतवर बने इसलिए दिल्ली की सत्ता स्वयं चलाना चाहती है?

इस बिल के पास होने का अर्थ साफ है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार का कोई अर्थ ही नहीं बचेगा और न ही आम जनता को सरकार चुनने का ही कोई मतलब ही रहेगा। केजरीवाल सरकार जो भी कानून बनायेगी उसे एलजी आराम से रोक देगा और विवाद की स्थिति में राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होगा। इसका मतलब साफ है कि सत्ता किसके हाथ में होगी?

( कौशल तिवारी 'मयूख' )