बसों में महिलाओं का मुफ्त सफर सही: कोर्ट

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दक्षिणापथ, दुर्ग। ऋषभ नगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास प्रवचन के 26वें दिवस महातपस्विनी श्री प्रभावती श्रीजी मसा ने फरमाया कि जिनवाणी सुनने से कान, दान देने से हाथ, संत दर्शन से नेत्र, और सत्य संकल्प से मन पवित्र होते हैं, उसी प्रकार संतुलित आहार से आत्मा पवित्र होती है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए आहार भी एक अप्रत्यक्ष कारक है। संतुलित व पौष्टिक आहार से मन सन्तुष्ट होता है और मन की तुष्टि आत्मा को पवित्र करने में सहायक होता है। कहते हैं "जैसा खाएं अन्न, वैसा होवे मन" आहार का मन से सीधा सम्बन्ध है। साध्वी मसा ने कहा कि अस्वस्थकर व अरुचि पूर्ण आहार से तन और मन दोनों की स्थिति बिगड़ती है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को आहार ग्रहण करने के मामले में सतर्कता बरतनी चाहिए। समाज में तीन तरह के लोग होते हैं। ये तीनों तरह के लोग अलग अलग अर्थों में भोजन करते हैं। जैसे अज्ञानी लोग पेट की भूख शांत करने के लिए भोजन करते हैं। अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये लोग खाने के लिए ही जीते हैं। दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं तो सामान्य तौर पर स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए संतुलित भोजन करते हैं। ये विवेकशील लोग होते हैं जो सोच समझकर खाते हैं। ऐसे लोगों के बारे कहते हैं कि "ये जीने की लिए खाते हैं"। इतना ही आहार लेते हैं जिससे शरीर व इंद्रियां सामान्य तरीके से अपना काम करते रहें। तीसरी श्रेणी साधु-संतों की है जिसमें सन्त, साध्वी व मुनिजन अपनी आत्मा के शोधन के लिए आहार ग्रहण करते हैं। आहार, व्रत, उपवास ये क्रम से नियम अनुसार चलते हैं। व्रत व आहार में संतुलन बनाये रखने के लिए कुछ नियम बनाये गए हैं। इन नियमों का कठोरता से पालन करते हुए प्रभु के आदेश का पालन करते हुए आहार लेते हैं। इनका आहार उद्देश्य पूर्ति के लिए होता है और उद्देश्य होता है- "मोक्ष"

आहार के प्रति अनुशासन व नियंत्रण को अति आवश्यक बताते हुए साध्वी मसा ने कहा कि कैसा खाना, कब खाना, क्या खाना और कितना खाना चाहिए , इस पर विवेकपूर्ण ढंग से निर्णय लेना चाहिए। अनुचित आहार से तप, व्रत, भंग होने का खतरा तो होता ही है, स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। शरीर बीमार हो जाता है और इंद्रियां अनुचित व्यवहार करने लगती हैं इससे जीवन चर्या बिगड़ती है। फिर भी अनेक समस्याएं आ खड़ी होती हैं। इस तरह जीवन में में आहार का बड़ा महत्व है। वर्तमान दौर में देखने में आ रहा है कि आहार के प्रति लोग पर्याप्त सजग नहीं हैं। तरह तरह की खाने की वस्तुएं घर व बाज़ार में उपलब्ध हैं, किसी बात की कमी नहीं है। जिव्हा भी नियंत्रण में नहीं रहती। परिणामस्वरूप लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ा रहता है और अस्वस्थ शरीर व्रत उपवास की कठोरता सह नहीं पाता। इसका सबसे बड़ा नुकसान आत्मा का होता है। आत्मा की शुद्धि के लिए जो कार्य होना चाहिए वह अवरुद्ध हो जाता है।