दिल्ली चुनाव: 2015 में 'जीरो' रही कांग्रेस ने AAP के 2 विधायकों को दिया टिकट, जानें पूरा गणित

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दक्षिणापथ, नगपुरा/ दुर्ग। हमें कभी शुभ विचार आते हैं और कभी अशुभ विचार। शुभ विचार कम आते हैं और अशुभ विचार अधिक आते है। ऐसा क्यूं होता है? ऐसा इसलिए होता है कि हमें पूर्व जन्मों में शुभ विचार तक पहुंचने का मौका ही नहीं मिला है, उक्त उद्गार श्री उवसग्गहरं पाश्र्व तीर्थ नगपुरा में चातुर्मासार्थ विराजित पूज्य मुनि श्री प्रशमरति विजय जी म सा ने प्रवचन में व्यक्त किए 7 पूज्य देवर्धि साहेब ने कहा कि, पूर्व जन्मों में हम हंमेशा अशुभ विचार में फंसे रहें अत: हमें शुभ विचार की आदत ही नहीं है। तीन समस्या हो रही है। एक, शुभ विचार आता नहीं है। दो, शुभ विचार आता भी है तो लंबे समय तक टिकता नहीं है और बिखर जाता है। तीन, शुभ विचार टिकता है तो हम उसे अमल में लाने से डरते हैं। हमे लगता है कि यह विचार मैं साकार नहीं कर पाउंगा।
शुभ विचार जरूरी है, शुभ विचार के उपर भरोसा रखना भी जरूरी है, शुभ विचार के साथ वफादारी निभाना भी जरूरी है। शुभ विचार, प्रभु की कृपा से जगता है। शुभ विचार, गुरूओं के आशीर्वाद से सुरेख आकार लेता है। हम पुराने अशुभ विचारों से अभिभूत होकर एक अभिनव शुभ विचार को ठोकर नहीं मार सकते हैं। शुभ विचार दुर्लभ संपदा है। उसे खोने न दे, उसे जाने न दे, उसे अपने साथ बनाएं रखें।
शुभ विचार पाने के लिये आप सत्संग करें। मुनिजन, ज्ञानीजन या धर्मीजन के साथ समय बिताने से शुभ विचार का जागरण सरल हो जाता है। शुभ विचार पाने के लिये आप स्वाध्याय कीजिए। शास्त्र अथवा सत् साहित्य में मन को जोडने से भी शुभ विचार का जागरण सरल हो जाता है।
अशुभ विचार अनादि काल की आदत है। शुभ विचार मानव अवतार की अनमोल पूंजी है। जो शुभ विचार से वंचित है उस के लिये कोई काम सरल नहीं है। जो शुभ विचार में निरत है उस के लिये कोई काम कठिन नहीं है।