कश्मीरी पंडितों पर बनी फिल्म "शिकारा" का ट्रेलर रिलीज

कश्मीरी पंडितों पर बनी फिल्म "शिकारा" का ट्रेलर रिलीज

-आमचर्चा में आमजनों की राय

दक्षिणापथ प्रस्तुति। छत्तीसगढ़ व गैर छत्तीसगढ़ियों का विवाद यदाकदा सुर्खियों में आते रहता है। आमचर्चा में लीग अपनी अपनी राय व्यक्त करते रहते है। इस विषय पर तोरण कुमार वर्मा कहते है कि छग के सब्बो चीज में 36गढ़िया मन के पहली अधिकार हरे फेर 36गढ़िया मन अपन जमीन ल बाहरी आदमी ल बेच देथे फेर ओमा अपन कहा ले जता सकथन। मोर हिसाब में जमीन ल लीज में देना चाहिए बेचना नही चाहिए। कोनो भी कामकाज बर पंचायत या स्थानीय प्रशासन ले परमिशन चाहिए रहिथे जेमा 36गढ़िया अपन अधिकार और नौकरी के बात ल कर सकत है फेर अइसने समय में हमरे आदमी मन दलाली कर देथे फेर लोगन मन अधिकार से वंचित हो जथे। परदेशिया मन के संरक्षक और समर्थक हमरे बीच के आदमी मन हरे जो धन और बल के लालच में कुकुर कस ओखर मन के चापलूसी करथे। परदेशिया मन के खेत मे काम करईया बहुत मिलथे उही जगह हमर खेत मे काम करईया नई मिलय । ओमन काम भी ज्यादा करथे। दूसर परदेश के आदमी इन्हा आके अपन संस्कृति ल नई छोडय। बहुत सही करथे काबर की अपन संस्कृति और धर्म ल छोड़इया मन आदमी हो ही नही सके । टेटका हरे जे मन अपन लालच के अनुसार अपन संस्कृति ल बदलत रहिथे।जगदलपुर में लोगन मन अपन संस्कृति और धरम सब ल छोड़ देहै जेकर कारण केवल लालच और इलाज ह बनथ हे। हमन अपन संस्कृति और समाज ल उतना महत्व नई दे पावन जेखर परमुख कारण हमर अज्ञानता । हमन अपन संस्कृति ल ही समझे नई पायन और नवा नवा संस्कृति मन आगे।
राजू चन्द्रनाहू का विचार है किछत्तीसगढ़ के अलावा हर राज्य में छेत्रिय पार्टी मन सफल हाबे। हर परदेशिया ल अपन समझ के आत्मसात करें के गुण ही आज कमजोरी बन गे हाबे
बाहरी मन कोनो जगह जय अपन संस्कृति ल नई भुलाय
बिहारी मन कोई भी स्टेट में रहय तरिया ल कब्जा करके एकजुटता दिखा के छठ पूजा करथे। हमन इहे रही के अपन सँस्कृति ल इग्नोर करत हन। पता नई कोन बात के हम ल शरम लागथे।
तिल्दा क्षेत्र के देवरी निवासी दीनू वर्मा का कथन है यह विषय बहुत ही विस्तृत विषय है। इस पर सही-सही आकलन करना किसी भी के लिए आसान नहीं है,,
छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक संसाधन यहां का मूल हक यहां के मूल निवासियों के लिए है ,पहला हक छत्तीसगढ़ी हो के लिए है,
लेकिन क्या छत्तीसगढ़िया एक है,,
जिस तरह हमारे छत्तीसगढ़ में यन्हा के आदिवासी जनजाति अपने आपको यहां के मूल निवासी बता कर, दूसरी जाति पर अपना वर्चस्व कायम करने में लगे रहते हैं,, तो फिर यहां का मूल निवासी कौन हुआ,, जिस पर छत्तीसगढ़िया बनाम गैर छत्तीसगढ़िया का जो चलन चला है क्या वह सही है??
जिस तरह यहां छत्तीसगढ़िया जातिवाद में संलग्न है उससे क्या उपेक्षा रख सकते हैं,,,
जो चुनाव में अपने घर के व्यक्ति को वोट नहीं देकर ,,
मुर्गा और दारू में बिक जाते हैं..
उनसे क्या उम्मीद रख सकते हैं
अपने समाज, अपने भाई सगे भाई को ,वोट ना देकर किसी अन्य को वोट करते हैं ,,
उनसे क्या उम्मीद रख सकते हैं,,
कभी नहीं…
क्योंकि छत्तीसगढ़िया कभी एक नहीं हो सकता ….

वह जाती वाद की दीवार में ही सिमट कर रह जाएंगे..
जिस तरह गांव का एक व्यक्ति या छत्तीसगढ़ीया व्यक्ति शहरों में दुकान खुले हुए हैं,, लेकिन लोग खरीदी करने के लिए किसी अन्य समाज वाले ,,किसी अन्य बाहर वाले के यहां जाते हैं ,,
तो क्या छत्तीसगढ़िया बाद सही मायने में सफल हो सकता है??

कुछ लोग छत्तीसगढ़िया गैर छत्तीसगढ़िया का जो विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं,, वह सही है और लोगों को जागरूक करने का एक प्रयास है ,,,
और होना भी चाहिए,,
लेकिन!!
क्या गैर छत्तीसगढ़ी हमें सिंधी ,मारवाड़ी ,जैनी, राजस्थानी ही बस होते हैं,,,
जो हिंदू है,,,
क्या वही बाहरी है,, और यहां उत्तर प्रदेश बिहार से आए हुए गैर हिंदू क्या छत्तीसगढ़िया हो गए,,,

अगर जैनी ,मारवाड़ी ,ओड़िया बिहारी ,हिंदू परदेसिया है तो!!

बाहर से आए मुस्लिम क्या यहां छत्तीसगढ़िया बन गए,,,
जिस तरह से उनका विरोध नहीं होता ,,मुझे लगता है कि लोग धर्म देखकर प्रदेश मे गैर छ्तीसग्ढी का नारा दे रहे हैं,,,
बिरगांव में विगत दिनों पथ संचालन पर गाजी नगर के युवक मुस्लिमों द्वारा पथराव की घटना हुआ,, इस पर किसी ने गैर छत्तीसगढ़िया बाद का हवा नहीं दिया,,,
रायपुर में मौदहापारा, ईरानी डेरा और वर्तमान समय में जय स्तंभ चौक पर हुई चाकूबाजी की घटना, जिस पर भी कोई तूल नहीं दिया गया,,
सिर्फ मुस्लिम देखकर …
क्या इस पर छत्तीसगढ़िया व गैर छत्तीसगढ़िया का जो जागरूकता है ,,,
क्या और सफल हो पाएगा ,,,कभी नहीं??
क्योंकि जिस तरह हिंदू को ही टारगेट किया जाता है,,
मुस्लिमों को भी करने लगे तो छत्तीसगढ़िया जागरूकता छत्तीसगढ़ सफल माना जाएगा,,
चाहे वह गरियाबंद की घटना हो,,
इस पर सभी मौन रहे ,,
क्योंकि मात्र मुस्लिम देखकर लोग विरोध नहीं करते,,
लेकिन हिंदू धर्म देखकर गुजरातियों, राजस्थानीओं ,बिहारी ,और उत्तर प्रदेश वालों के साथ हमेशा प्रदर्शन किया जाता है ,,,
कभी इस पर भी प्रदर्शन हो, तब… छत्तीसगढ़िया बनाम बाहरी वाद सही मायने में सफल हो पाएगा ,,,
रही बात छत्तीसगढ़िया संस्कृति अस्मिता स्वाभिमान की तो,,,
मैं बता दूं ,जो आधुनिकता की होड़ में जो पढ़े लिखे हैं ,,
हमारे छत्तीसगढ़ के सभी लोगों का अनुकरण कर रहे हैं,,
चाहे गरबा हो या कुछ और नित्य सबको प्रदेश में भाग ले रहे हैं ,,
और हमारे पारंपरिक तीज त्यौहार को रूढ़िवादी, व देहाती समझ कर नकार रहे हैं,,,,
ऐसे लोग जो सिर्फ अपने प्रदेश के संस्कृति को पीछे कर रहे हैं..
गांव में आज भी अपना परंपरा जीवित है …
चाहे मारवाड़ीओ की बफे का अंधानुकरण हो,, या गरबा नित्या का इसमें पढ़े-लिखे उच्च वर्ग के ही लोग शामिल हैं,,,
अब तो यहां तक शादियों में मरवाडियों जैसा लेनदेन का नगद प्रचलन भी शुरू हो रहा है ,,और हो भी गया है,,
जो आगे जाकर समाज को विकृत करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।इस पर सभी समाज रोक लगा ले अभी जिस तरह छत्तीसगढ़ में सूर्य उपासना का पर्व छठ त्यौहार का जो विरोध किया गया है। कभी अन्य धर्म के त्योहारों पर नहीं करते ।अगर विरोध करना है तो सभी परदेसियों का हो,, इसमें हिंदु मुस्लिम ना देखें। तब जाकर सही मायने में छत्तीसगढ़िया बाद का मुद्दा सफल होही।
गिरीश चंद्रकार का कहना है कि किसी भी प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों पर पहला हक ..
पहले आदमी का होता है (जो एक विवादित मुद्दा है कि पहला कौन) उसके बाद उसे संरक्षित व सुरक्षा करने लोगोँ का है जो तन मन धन से वंही का हो जाता है।।
हमारी वर्षों पुरानी शांत माहौल , हमारी संस्कृति में समा गई ,हमारी जीवन शैली व सोच में रच बस गई , हमारा दब्बूपन जिसका परिणाम है, गनीमत है कुर्मियों में कुछ अगवापन , बागीपन बचा हुआ है वरना परदेशिया शब्द भी यँहा सुनने में नही मिलता ।
हमारे प्रकृति पूजक छत्तीगढ़ निवासी लोग अपना साहित्य में अपने दैनिक जीवन पध्दति में अपने आराध्य को उचित स्थान न दे पाए ,घर का जोगी जोगड़ा आन का शिरोधार्य , एक उदाहरण से समझिए आज घुचापाली पहाड़ी स्थित देवी चंडी आज जीतनी शक्तिशाली व ममतामयी हैं वो पहले आज से 70 साल पहले भी रहीं होंगी पर उस समय कोई स्थानीय बैगा घूम जग देकर खुस था और देवी चंडी भी पर धिरे धीरे बईगा पीछे हटते गया ? या साजिश के तहत हटाया गया उसके पूजा पद्धति को पिछड़ा ,जंगली ,देहाती पद्धति कह कर उसके जगह पर नए नए श्लोकों व आरती ने ले लिया और इसे उच्चारण करने वालों महंगे धोतिधारियों ने ,इसमें छत्तीगढ़ वालों की पूर्ण सहभागिता रही कि उन्हें पता भी न चला कि वे क्या खो दिए ? हमारी ही देवी माँ का परिचय वे हमें ही देने लगे (हम गूंगे जो बन बैठे) एक लकीर के सामने बड़ी लकीर खिंच गए वे बड़े चतुर हैं वे ,हम भोले के भोले ही रह गए इतने की अपने बूढा देव का नाम लेने में लजाने लगे ,कंही दबे स्वर नाम भी लिया तो ये कह कर की बूढा देव ही शिव है ये न कहा कि बूढा देव ही आदि देव है , ये पढ़ने में एक सा लगेगा पर चतुर लोग जानते हैं इसका असर क्या होगा , बस ऐसे ही धीरे धीरे हम परदेशी के गुणगान करने लगे और उनके संरक्षक बन बैठे , अपने छत्तीगढ़ी जीवन शैली और देवी देवता के प्रति आस्था की कमी कहो या परशैली के प्रति आकर्षण ,।।
जब कुछ होश आया तो देर हो चुकी है , जाती समीकरण व आरक्षण के कारण छत्तीगढ़ से नेता तो बनने लगे हैं पर अपनी चला नहीं पाते क्योंकि चपरासी तो छात्तीसगढिया मिल जाता है पर पी. ए. ,बाबू , बड़े साहब सब परदेशिया , कुछ छात्तीसगढिया लोग पद पा कर भी छात्तीसगढिया का भला नही करते, कहो तो बड़ी बड़ी प्रवचन देते हैं ,परदेशी लोग अपनो को नियमों को दरकिनार कर प्रमोशन व नॉकरी देते हैं लोकल तक नियम की बात भी नही करता ऐसे में कैसे छात्तीसगढिया वाद जागेगा, अभी एम्स में परदेशी लोग यँहा का निवास प्रमाण पत्र बना कर यँहा के बच्चों कस हक मार लिए अब विद्यार्थियों का कोई संगठन तो है नही तो विरोध को करे ? , जब तक नीचे से ऊपर तक छात्तीसगढिया न होगा तो भला कैसे होगा ।।
टीवी मोबाइल तो अभी आया है उससे पहले ही बईगा की छुट्टी हो गई थी समझ सको तो समझो ।।

स्थानीय क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियां सफल नहीं हो पा रही हैं क्यों ?
क्योंकि स्थानीय लोगोँ को अपने लूटने पीटने बर्बाद होने का गम नही है , आगे की सोच नही है तभी तो अपने छत्तीगढिया मालिक के घर मे सबसे ज्यादा छुट्टी मारते हैं और काम भी कम करते हैं ऊपर से सम्मान की चाह भी ज्यादा ,हम रे कह दें तो काम बन्द ,वंही गुणवंत दुकान का सेठ बात की शुरूआत ही रे बे से करे तो नोकर के लिए वो अपनापन ,
क्षेत्रीय पार्टियों फील्ड में काम नहीं करती सीधे वोट मांगने आ जाती हैं ऊपर से धनबल व अफसरशाही की कमी इसलिए जब तक क्षेत्रीय पार्टियां जब तक जमीनीस्तर का काम 20- 25 साल नहीं करेंगी ,अलख न जगा सकेंगी , एक सोच एक योजना एक संगठन रहे तो सब कुछ पाया जा सकता है।