लॉकडाऊन के दौरान निजी स्कूलों के द्वारा पालको से जबरिया फ़ीस मांग को रोकने, अय्यूब खान ने मुख्यमत्री भूपेश बघेल के नाम सौपा पत्र...

लॉकडाऊन के दौरान निजी स्कूलों के द्वारा पालको से जबरिया फ़ीस मांग को रोकने, अय्यूब खान ने मुख्यमत्री भूपेश बघेल के नाम सौपा पत्र...
-पाटन के छाटा की पायल महिला सहायता समूह बटेर पालन कर आज आर्थिक स्वालंबन से बढ़ रही हैं आगे, अन्य महिलाओं के लिए बनी उदाहरण -हर महीने 8 से 10 हजार रूपए कमा रहीं महिलाएं दक्षिणापथ, दुर्ग । 'मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास, हम होगें, कामयाब एक दिन'। 'साथी हाथ बढ़ाना, एक अकेला थक जाएगा, मिलकर हाथ बढ़ाना'........... जैसे अनेक प्रसंग, गीत वाक्य लागों के मन में न केवल विश्वास बढ़ाते है अपितु उनकी जीत और सफलता की नीव को भी मजबूती देते हैं। अगर कोई काम पूर्ण विश्वास और दृढ़ इच्छा से संकल्पित और संगठित होकर किया जाए तो नामुमकिन लगने वाला काम भी सफलता की राह दिखा जाता है। हम ऐसे ही एक महिला स्व-सहायता समूह की बात कर रहे हैं जिन्होंने अपने खालीपन और बिना काम के घर बैठने के बजाय बटेर पालन को आर्थिक आमदनी का जरिया बनाया है। पाटन के ग्राम पंचायत छाटा की पायल महिला स्व-सहायता समूह अपने घर गृहस्थी व परिवारिक जिम्मेदारी के साथ-साथ बटेर पालन कर आज सशक्त रूप से आगे बढ़ रही हैं। छाटा की पायल महिला स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष ऐमिन यादव की मीठी मुस्कान देखते ही बनती हैं। वे उत्साह से बताती हैं कि आज से करीब 5 साल पहले उनके मन में समूह गठित कर कुछ करने का विचार आया। उन्होंने अपने विचार को अन्य महिलाओं के साथ साझा किया। उनकी विचार से गांव की महिलाएं सहमत हुई और उन्होंने निश्चय किया कि गांव में बटेर पालन का व्यवसाय करेंगी। उन्होंने बताया कि व्यवसाय शुरू करने के लिए पैसे की कमी रोड़ा बन रही थी, ऐसे में पंचायत के माध्यम से पता चला कि महिला समूह को व्यवसाय शुरू करने के लिए सहजता से ऋण उपलब्ध कराया जाता है। जिससे उन्होंने जिला पंचायत से संपर्क किया। जिला पंचायत द्वारा उन्हें बटेर पालन के लिए पचास हजार रूपए की ऋण स्वीकृति दी गई। साथ ही समूह को बटेर पालन के लिए आवश्यक प्रशिक्षण और बटेर के चूजे उपलब्ध कराये गए। समूह की महिलाएं बताती हैं कि पहले उन्हें यह काम कुछ अटपटा सा लगता था। शुरूआत में बटेर के चूजे को पालना सहज नहीं था, बाद में धीरे-धीरे वे अभ्यस्त हुई। समूह की महिलाएं नियमित रूप से बटेर की देखरेख, दाना-पानी की जिम्मेदारी करती रहीं। बटेर का पहली ही विक्रय में लाभ साफ नजर आने लगा, इससे समूह की महिलाएं की आखें चमक उठी। समूह की महिलाओं ने बताया कि बैंक से मिले ऋण का सभी किस्तों की भुगतान हो गया है। बटेर पालन कर समूह की महिलाएं प्रतिमाह आठ से दस हजार की बचत कर रही हैं। बचत के पैसों से अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और घर की जरूरत में खर्च कर रही हेै। महिलाओं ने बताया कि पहले काम की तलाश में दूसरों के यहां मजदूरी करती थी। लेकिन आज वे सशक्त रूप से मजबूत हैं, और दूसरों के यहां मजदूरी करने के लिए विवश नहीं है। आज उनके बैंक खातों में बचत की राशि प्रतिमाह जमा हो रही है जिससे वे काफी खुश है। स्व-सहायता समूह की महिलाएं आर्थिक स्वालंबन से आगे बढ़ रही हैं और क्षेत्र की अन्य महिलाओं के लिए उदाहरण बनी हैं।