लेख: पंडवानी के पितामह - स्व झाडूराम देवांगन
14 जून 2023 को 21 वीं पुण्यतिथि पर सादर स्मरण
महर्षि वेदव्यास सृजित महाकाव्य महाभारत को हिन्दू धर्म का पांचवा वेद माना गया है। इसी महाभारत के प्रमुख पात्रों "पाँच पांडवों की कथा को छत्तीसगढ़ी बोली में गाकर प्रस्तुत करने को ही "पंडवानी" कहा जाता है। पंडवानी को अपनी कला, साधना तथा ओज़ के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाने वाले पंडवानी के पितामह स्व झाडूराम देवांगन का जीवन भी उतार चढ़ाव से भरा था। दुर्ग जिले के ग्राम बासग मे स्व हरु राम देवांगन एवं गौतम दाई के घर वर्ष 1927 मे जन्म लेने वाले झाडूराम की शिक्षा मात्र चौथी तक थी। अपनी जातीय संस्कृति के अनुरूप झाडूराम भी ताना बाना अर्थात बुनाई विधा के जानकार थे । वे कपड़ा बुनते थे । उस जमाने में प्रसिद्ध मोटी साड़ियों को जिसे “कोस्टउंहा लुगरा" कहा जाता था, झाडूराम कुशलता से बुनते थे। यह लुगरा छत्तीसगढ़ के मेहनतकश महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी था - सस्ता सुंदर और टिकाऊ की तर्ज पर । इसी "कोस्टउंहा लुगरा को बालक झाडूराम से गाँव के ही मंगलू केंवट ने खरीदी थी एक रुपए में, पर दाम नहीं चुका पाये थे। अपनी मेहनत की कीमत पाने के लिए झाड़ूराम ने मंगलू केंवट के बहुत चक्कर लगाए थे, पर वे अदा नहीं कर पा रहे थे। तब उन्होने इस लुगरा की कीमत के बदले मे अपने पास रखी सबल सिंह चौहान लिखित महाभारत की एक प्रति झाडूराम को दे दी । झाड़ूराम अपनी मेहनत के बदले प्राप्त इस महाभारत को प्रतिदिन पढ़ना प्रारम्भ किया और बहुत ही जल्दी कंठस्थ कर लिया पंडवानी गायन की प्रेरणा झाडूराम को दुरुग सिंह ठाकुर और लेखराम ठाकुर से मिली । पंडवानी पर कार्यक्रम प्रारम्भ करने का प्रसंग भी रोचक है। ग्राम बसींग मे प्रतिवर्ष हरेली में कोई न कोई कार्यक्रम होते रहता था। बात वर्ष 1945-46 की है। तब तक झाडूराम ने न सिर्फ महाभारत कंठस्थ कर लिया था, बल्कि पंडवानी गायन की प्रेरणा भी हासिल कर ली थी। गाँव के कलाकार इतवारी राम साहू भीड़ के सामने मंच पर महाभारत की कथा का वर्णन कर रहे थे, झाडूराम को महाभारत कथा की गलत व्याख्या सहन नहीं हुई, उन्होने गायक को तत्काल टोक दिया । अपना अपमान होते देख इतवारी राम साहू ने युवक झाडूराम को मंच पर आकर कथा कहने की चुनौती दी । झिझकते हुए चुनौती स्वीकार कर झाडूराम ने महाभारत कहना प्रारम्भ किया। मात्र 17 18 वर्ष की आयु में किया गया यह प्रयास लोगों द्वारा सराहा गया और यही सराहना झाडूराम को सफलता की बुलंदियों पर ले गया । लगातार आमंत्रण मिलते गया और वे कार्यक्रम देते गए। -
स्व. झाडूराम के शब्दों मे पंडवानी दरअसल पाँच भाइयों याने पांडवों की कथा है, जिसे हम गाकर प्रस्तुत करते हैं। यह सबसे पहले नारायण वर्मा जी के द्वारा गाया गया था। झाडूराम भी पहले हिन्दी मे गायन करते थे पर वर्ष 1982 से छत्तीसगढ़ी मे पंडवानी गायन प्रारम्भ किया है। पंडवानी गायन की दो शैलियाँ हैं - वेदमती और कापालिका। दोनों तरह की शैलियों के कलाकार बोल वृंदावन बिहारी लाल की
जय के उद्घोष के साथ गायन प्रारम्भ और समापन करते हैं। श्री सबल सिंह चौहान लिखित महाभारत का आधार लेकर गायन करने वाले वेदमती शैली के गायक कहलाते हैं। झाडूराम जी इसी शैली के गायक थे । वे छत्तीसगढ़ के पहले गायक हैं जिन्होंने लोकशैली, लोकधुन, लोकमुद्रा के साथ शास्त्र को जोड़ते हुए पंडवानी प्रस्तुत की है। झाड़ूराम जी ने तीर्थ ग्राम नगपुरा से पंडवानी गायन करते हुए देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। आकाशवाणी भोपाल में पहला कार्यक्रम सन 1964 मे दिया । दूरदर्शन मे भी दिये हैं। वर्ष 1981-82 मे सिर्फ एक बार विदेश यात्रा पर गए। इस यात्रा मे उन्होंने जापान, रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, पश्चिम जर्मनी, पूर्वी जर्मनी, टर्की, ईरान, इराक, इंग्लैंड समेत कुल 15 देशों में पंडवानी का जीवंत प्रस्तुतीकरण दिया । किन्तु इसके बात वे कभी विदेश नहीं गए क्योंकि इस यात्रा के दौरान प्रबन्धकों द्वारा कलाकारों का शोषण किया जाता रहा है। उन्हे स्वीकृत सुविधाओं और मानदेयों से कम सुविधाओं और शुल्कों का भुगतान किया जाता था । विदेशी भोजन उन्हे पसंद नहीं था । इसीलिये श्रीमती इन्दिरा गांधी जी के अनुरोध पर ही वे इस एकमात्र विदेश यात्रा के लिए तैयार हुए थे ।
स्व झाडूराम जी को अनेकों सम्मान मिले हैं। इनमें प्रमुख हैं -
1- वर्ष 1988 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा संगीत नाटक अकादमी सम्मान , 2 13 फरवरी 1984 को मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रदत शिखर सम्मान,
3 1990-91 में मध्य प्रदेश शासन द्वारा प्रदत तुलसी सम्मान,
4 वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रदत्त दाऊ मंदराजी सम्मान,
5- 1998 में आकाशवाणी भोपाल द्वारा प्रदत साधना सम्मान,
6- 27 दिसंबर 1994 को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण सर्व दलीय मंच द्वारा प्रदत्त धरती पुत्र और छत्तीसगढ़
रत्न सम्मान,
71 फरवरी 1997 को दक्षिण पूर्व कॉल फील्ड्स लिमिटेड द्वारा प्रदत्त कला सम्मान,
8- 17 मई 1991 को छत्तीसगढ़ देवांगन समाज द्वारा प्रदत्त परमेश्वरी रत्न सम्मान ।
झाडूराम जी के परिवार मे श्रीमती सुखबती, पुत्र कुंजबिहारी, पुत्री शांति बाई थी। उनकी दो बहने रमहीन बाई और सूकवारों बाई थी। वे अपने साथी कलाकारों को भी अपने परिवार का हिस्सा मानते थे । उन्हे समान मान सम्मान देते थे। उनके सहयोगियों में रागी रामनाथ यादव, तबला वादक विक्रम दास, हारमोनियम वादक लखन लाल वर्मा, बेन्ज़ो वादक चैत राम प्रमुख थे। झाड़ूराम के प्रमुख शिष्यों में चेतन देवांगन, पहन्दा, पुनाराम निषाद, रिंगनी, प्रभा ठाकुर, चंदखुरी फार्म प्रमुख है। ये झाडूराम जी की महानता थी की वे यह मानते थे कि सभी कलाकार अपनी साधना और श्रद्धा के बल पर अपना मुकाम हासिल किए हैं, मेरा योगदान तो बहुत थोड़ा है। 13 जून 2002 की रात्रि 2.20 बजे (अर्थात 14 जून) 80
वर्ष की आयु में झाड़ूराम जी का निधन हो गया। वे अपने पीछे छोड़ गए भरा पूरा परिवार, साथी कलाकार, प्रसंशक और पंडवानी कथा जो उन्हें सदैव याद करते रहेंगे ।
आज पंडवानी विधा मे भी अन्य विधा की तरह बहुत पैसा है, पर झाड़ूराम जी के समय पैसों की चमक बहुत कम थी। यही वजह है कि गुरु शिष्य परंपरा को कायम रखते हुए आज भी श्री चेतन देवांगन जी हर वर्ष गुरुपूजा के नाम पर झाड़ूराम जी का अभिनंदन करते है। प्रदेश देवांगन समाज के प्रयासों से तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी जी के द्वारा स्व झाडूराम देवांगन के नाम पर दुर्ग जिले के प्रमुख शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक शाला, दुर्ग का नामकरण किया गया है । यहाँ जिला देवांगन समाज द्वारा स्व झाडूराम देवांगन की प्रतिमा की स्थापना की गई, जहां प्रतिवर्ष देवांगन जन उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते हैं । देवांगन जाति का नाम पूरे विश्व में रौशन करने वाले इस महान सपूत को हम सब अपनी आदरांजली प्रस्तुत करते हैं ।
ललित देवांगन छाया
सिंधिया नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)