सरकार किसकी आएगी, लोगो में जमकर अटकलबाजी

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रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत पहले की तरह ही औसत रहा। अब आम जनों में इस बात की अटकल बाजी तेजी से शुरू हो गई है कि छत्तीसगढ़ में सरकार किसकी बनने जा रही है।
इससे यह स्पष्ट हो गया कि सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर की भूमिका नही रही है। किंतु चुनाव के 5 महीना पहले से भूपेश सरकार का जिस तरह से छत्तीसगढ़ में फील गुड की हवा बह रही थी, वह चुनाव आते-आते मंद पड़ गया । इसका कारण कांग्रेस को शिद्दत से तलाशना होगा। क्योंकि 6 महीने बाद देश में लोकसभा चुनाव भी होना है।
 मतदान तिथि के आखिरी 10 दिनों में जिस तरह से भाजपा का फूल तेजी से खिला, उसने सट्टा बाजार में भी भाजपा की जीत की संभावना बढ़ा दी। आम लोगो का भाजपा के पक्ष में रुझान दिखा। सवाल उठता है कि क्या छत्तीसगढ़ के असेंबली चुनाव में मोदी का फैक्टर  चल गया । 
इसके बावजूद मुकाबले को एक तरफा कोई नहीं मान रहा है  अनुमानों में भले ही भाजपा थोड़ा आगे दिख रही हो, मगर जमीनी हकीकत अगले महीने की तीन तारीख को पता चलेगा। 
 आज भी बहुत से लोग मानते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस की सरकार फिर से आ रही है। यदि कांग्रेस 46 सीट हासिल कर लेती है तो सरकार बनना तय है । भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीतियों से कांग्रेस को आखिरी आखिरी समय में ऐसे फंसाया कि कांग्रेस क्या करें, क्या न करें.., की स्थिति में आ गई थी । कांग्रेस को पड़ने वाले वोट के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा ने कई बिसातें बिछाई । कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ अन्य पार्टी व निर्दलीयों को चुनाव मैदान में गुपचुप तरीके से उतारा। एक-एक सीट पर मंथन हुआ। हालांकि कांग्रेस ने भी राज्य के एक-एक सीटों पर गहन मंथन कर रणनीतियां बनाई। मगर कांग्रेस की रणनीतियां दिल्ली में वहां बना बनाई गई जहां छत्तीसगढ़ की राजनीतिक पृष्ठभूमि के जानकार लोग नहीं के तौर पर हैं । मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को फ्री हैंड देने के बावजूद हुए सभी 90 सीटों पर एक साथ ध्यान नहीं दे सकते थे। क्योंकि वह स्वयं कांग्रेस के प्रत्याशी है। भारतीय जनता पार्टी ने महीनो पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को उनके गृह क्षेत्र में घेरने का प्रयास किया था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री बघेल सभी सीटों पर ध्यान देने का पूरा प्रयास किया। पर यदि वे अपनी सीट को पूरी तरह नजरंदाज करते तो उनके लिए राह बेशक कठिन हो जाती।
इस चुनाव में भाजपा के पास एक से बढ़कर एक स्टार प्रचारक दिखे तो कांग्रेस के पास बड़े नेताओं का नितांत अभाव दिखाई दिया। कांग्रेस में गांधी परिवार से बाहर कोई ऐसा मास लीडर नहीं जो जनता को अपनी ओर खिंचे, जिन्हें जनता सुनने के लिए लालायित हो। जबकि भाजपा में कई नेता ऐसे हैं जिन्हें आमजन देखना सुनना चाहते हैं। 
 कांग्रेस व भाजपा इन दोनों पार्टियों के घोषणा पत्र में ज्यादा अंतर नहीं है। ऐसा लगता है जैसे दोनों पार्टियों ने एक दूसरे की घोषणा पत्रों को चुरा लिया है । जनता का ज्यादा से ज्यादा वोट खींचने के लिए हर संभव चुनावी घोषणा किए गए । लेकिन उनमें से सभी घोषणाओं का पूरा होना संभव नहीं । जनता भी यह बात अच्छी तरह जानती है कि चुनाव के समय किए गए वादे अक्सर पूरे नहीं होते हैं । इसके बावजूद जनता किसी एक पार्टी पर विश्वास जताती है और न्यूनतम फायदों के मद्देनजर वोट करती है।