विधायक अरुण वोरा, ताम्रध्वज साहू व देवेंद्र यादव के सामने परीक्षा की घड़ी...

(दक्षिणापथ समाचार)। छत्तीसगढ़ में कुल 71 कांग्रेस के विधायक हैं। इन विधायकों में से अधिकांश को आगामी चुनाव में प्रत्याशी बनाए जाने की संभावना है। इसके बावजूद फीडबैक के आधार पर कई करंट विधायकों के टिकट भी कटने के आसार हैं। जिन विधायकों को लगता है कि उनकी टिकट कंफर्म है, वे अपनी चुनावी तैयारी में लग गए हैं। मगर देखा गया है कि 5 सालों की सत्ता ने इन विधायकों के इर्द-गिर्द काकस मंडली का ऐसी परिपाटी बना दी है कि उक्त विधायक जमीनी सच्चाइयों से रूबरू नहीं हो पाते। वे अपने चापलूस सिपहसलारों पर भरोसा करते हैं और उन्हीं से सलाह लेकर राजनीतिक कार्यक्रम बनाते हैं।
सत्ता के इर्द-गिर्द चतुर किस्म के लोगों का चिपकना कोई नहीं नई बात नहीं। मगर जनता द्वारा चुने गए विधायकों को इतनी परिपक्वता दिखानी चाहिए कि जमीनी सच्चाई पहचान जनता से सीधा जरूरी संवाद कर सके।
जनता से सीधा साक्षात्कार किसी आलीशान कार्यालय या भवन में बैठकर नहीं किया जा सकता। बल्कि उसके लिए जनता के बीच उनके रहवास क्षेत्र की गलियों में उतरना पड़ता है। अक्सर मतदाताओं की शिकायत रहती है कि चुनाव के समय नेता वोट मांगने घर तक आते हैं, मनुहार करते हैं, हाथ पैर जोड़ते हैं, और जन सेवा की बड़ी-बड़ी बात करते हैं । लेकिन चुनाव जीतते ही वही नेता ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे गधे के सर से सिंग।
इसके इतर ऐसे भी नेताओं की बड़ी संख्या हमारे राज्य में रही है, जो चुनाव के बाद भी जनता से जुड़े रहें। ऐसे नेता ही आगे चलकर बड़े जननेता व प्रखर राजनेता बनते हैं।
किसी नेता की असली ताकत उसकी जनाधार ही होती है। ऐसा जनविश्वास जो खिलाफत में बहने वाली हवा का भी रुख बदल दें। अपने जनप्रतिनिधि के साथ ताकत बनकर खड़ी रहे। ऐसा नेता बनने के लिए जन-जन की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध रहना पड़ता है। यह नहीं कि चुनाव के समय मतदाताओं की याद आई और चुनाव जीतने के बाद उन्ही मतदाताओं को भुला दिया गया।
बहरहाल, दुर्ग विधायक अरुण वोरा, गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, भिलाई विधायक देवेंद्र यादव समेत अनेक नेताओं के सामने यह चुनाव परीक्षा की घड़ी है। लोगो के बीच इन नेताओ का कितना सामाजिक व राजनैतिक पैठ है, यह चुनाव परिणाम स्पष्ट करेगा।