भाजपा नहीं उतार पाई ढंग का प्रत्याशी, कांग्रेस का दावा निकला सही!?

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– अभी तो पुराने 14 सीटें बचने पर भी संदेह
दक्षिणापथ समाचार। छत्तीसगढ़ में चुनाव की तारीख 7 व 17 नवंबर तय हुई है। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी का टिकट वितरण ने भाजपाई सहित आम लोगों को निराश कर दिया है । जानकार कहते है कि पूर्व की 14 सीटों को भाजपा बचा पाएगी या नहीं, अभी कहा नहीं जा सकता।  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ियावाद की तूती अब और मुखर हो गई है। बीजेपी ने विरोध के बावजूद उन्ही प्रत्याशियों पर फिर से दांव आजमाया, जिन चेहरों ने पूरे 15 साल तक छत्तीसगढ़ में राज किए और भाजपा की लुटिया डुबाने में कोई कसर न छोड़ी। सत्ता से ऐसे बाहर हुए कि भूपेश की अगुवाई में कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में नया इतिहास रच दिया। इन पांच सालों में उम्मीद थी कि भाजपा सबक लेगी, और सत्ता वापसी का हृदय की गहराइयों से प्रयास करेगी, मगर हो रहा जस्ट उल्टा। 
भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव के पहले कई बड़ी-बड़ी बातें की थी।  टिकट वितरण के बाद वे सारी बातें धरी रह गई। भूपेश बघेल के टक्कर का नेतृत्व ढूंढना तो दूर की बात है, अपनी विरासत बचाने भी संघर्ष करना पड़ेगा। जबकि केंद्र में मोदी की लोकप्रिय सरकार है, और बीजेपी नेता डबल इंजन की सरकार की बात कहते रहे। भाजपा के बड़े नेताओं ने पहले कहा था कि सभी सीटों पर वजनदार प्रत्याशी उतार कर कांग्रेस को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में ही घेरेगा। लेकिन यह फलसफा सुपर फ्लाप साबित हुआ। पता नही किन फीड बैक्स के आधार पर भाजपा ने कई ऐसे प्रत्याशियों पर दांव लगाया है, जो संगठन की जमीनी संरचना भी नहीं समझते।अनेक सीटों पर ऐसे प्रत्याशी तय किए हैं, जो कभी तहसीलदार की ऑफिस तक कदम नहीं रखे हैं। जनता किस आधार पर उन्हें अपना विधायक चुनेगी। भाजपा ने ऐसे भी प्रत्याशी उतारे हैं जो पार्षद का चुनाव नही जीत पाए थे । 
भाजपा ने महिला आरक्षण पर बड़ी-बड़ी बातें की; पर प्रत्याशियों की सूची देखने पर उसकी भी हवा निकल गई । भाजपा दर्जन भर महिला प्रत्याशी तक उतार पाने में मुकम्मल न रही।  दुर्ग संभाग में अभी भाजपा ने बेमेतरा व पंडरिया विधानसभा क्षेत्र से अपने प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। अंदेशा है कि किसी एक पर महिला प्रत्याशी उतारे जाए।
 इधर, छत्तीसगढ़ में राजनीतिक प्रेक्षक कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के टिकट वितरण ने मोदी फैक्टर को भी हिला दिया है । यह कहने में गुरेज नहीं, भूपेश की रणनीति के सामने भाजपा का स्थानीय नेतृत्व शुरुआती दौर में ही फेल हो गया। 
 कर्मचारियों की भी आश टूटी 
कांग्रेस की भूपेश सरकार से नाराज कर्मचारियों की भी उम्मीदें भाजपा प्रत्याशियों की सूची देखकर टूट गई है। भूपेश सरकार से नाराज सरकारी कर्मचारी विकल्प के तौर पर भाजपा की ओर ध्रुवीकृत हो सकते थे। किंतु भाजपा के प्रत्याशियों को देखकर वह संभावना धूमिल हो गई। स्थानीय सियासत के जानकार कहते हैं कि हालिया दौर में भाजपा को उनके कैडर का फिक्स वोट भी मिल पाए, वह भी बहुत है। अन्यथा, प्रत्याशियों को देखकर भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता व स्थानीय नेता मायूस है।